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गद्यशैली : निबन्ध एवं आलोचना [ १२१
सर्वसाधारण में हिन्दी-प्रचार आन्दोलन का द्विवेदीजी ने शैली की दृष्टि से नेतृत्व किया । हिन्दी के सहज विकास एवं प्रचार की दृष्टिपथ में रखते हुए उन्होंने कहानी कहने की अत्याकर्षक और मुग्धकारी शैली के द्वारा कठिन विषय को भी सरल भाषा में कहना प्रारम्भ किया । इस नवीन शैली के प्रवर्तन का प्रयास भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने किया था, परन्तु भाषा को माँजकर शैली को सुनिश्चित गति प्रदान करने का कार्य द्विवेदीजी ने ही किया ।
शैली के स्वरूप को लेकर साहित्य जगत् में चर्चाएं होती रही हैं । और, इस सन्दर्भ में शैली तथा रचनाकार के व्यक्तित्व के परस्पर गठबन्धन पर अधिकांश विचारकों ने जोर दिया है । 'व्यक्तित्व ही शैली है'- इसी बात को घुमा-फिराकर एक्० एल० लुकास, १ जे० मिडिलटन मरे, २ आर्० ए० स्कॉटजेम्स, 3 बफन ४ और हडसन" जैसे पश्चिमी विचारकों एवं शिवदानसिंह चौहान, डॉ० नरेन्द्र ७, आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी' प्रभृति भारतीय विद्वानों ने भी कहा है । शैली और व्यक्तित्व के अन्योन्याश्रित सम्बन्धों की इस पृष्ठभूमि में शैली को प्रत्येक अभिव्यक्ति का साधारण धर्म नहीं, विशिष्ट अभिव्यक्ति का सहज धर्म कहा जा सकता है । परन्तु, द्विवेदी-युग
9 F. L. Lucas.
२. J. Middleton Muray.
३. R. A. Scott James.
४. Buffon.
५. Hudson.
६. " साहित्य मे शैली का अर्थ है शब्दचयन और वाक्यविन्यास का ऐसा ढंग, जो लेखक के व्यक्तित्व और उसके विचार और मन्तव्य को पूर्ण रूप से व्यक्त कर सके । जिस लेखक की भाषा उसके विचारों के अनुरूप हो, उन्हें अधिकसे-अधिक मार्मिक और सुस्पष्ट ढंग से व्यक्त कर सके, उसी शैली को हम अच्छी या श्रेष्ठ शैली कह सकते हैं ।"
- श्रीशिवदान सिंह चौहान : 'आलोचना के मान', पृ० १५१ । ७. " शैली के दो मूल तत्त्व हैं - एक व्यक्ति-तत्त्व और दूसरा वस्तु-तत्त्व | ..... वास्तव में, शैली के व्यक्ति तत्त्व और वस्तु तत्त्व में व्यक्ति तत्त्व ही प्रधान है, उसी के द्वारा शैली के बाह्य उपकरणो का समन्वय अनेकता में एकता की स्थापना करता है ।" - डॉ० नगेन्द्र : 'भारतीय काव्यशास्त्र की भूमिका', पु० ५३ । ८. "आज शैली का प्रयोग कला और शिल्प के समस्त उपकरणों की अभिव्यक्ति के लिए किया जाता है ।" - आ० नन्ददुलारे वाजपेयी : 'नया साहित्य : नये प्रश्न', पृ० २३ ।