________________
११४ ] आचार्यं महावीरप्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व एवं कर्त्तृत्व
और हटाऊवाद के पक्षधर लाला भगवान दीन, रामचन्द्र शुक्ल, भगवानदास हालना आदि थे । द्विवेदीजी अधिकांशतः विभक्तियों को हटाकर लिखने के पक्ष में थे, फिर भी उनका मत सुविधानुसार सटाकर या हटाकर लिखने का था । द्विवेदी युग मे लेखनी - युद्धों का जो वातावरण तैयार हो गया, उसके फलस्वरूप द्विवेदीजी के भाषा-सम्बन्धी आदर्शो को प्रचार एवं प्रसार मिला । भाषा के सम्बन्ध मे द्विवेदीजी की नीति उदार थी । वे साधारणतया संस्कृत, उर्दू, अँगरेजी आदि सभी भाषाओं के उन सरल शब्दों के व्यवहार के पक्षपाती थे, जिनको प्रयोग मे लाने से भाव - प्रकाशन मे विशेष बल के आगमन की सम्भावना हो । शब्दचयन, वाक्यगठन एवं भावव्यंजना की सरलता की दिशा में भी द्विवेदीजी ने आदर्श उपस्थित किया । अपने इन प्रयत्नों द्वारा उन्होंने व्याकरण और भाषा-सम्बन्धी भूलों को दूर कर हिन्दी भाषा को विशुद्ध बनाया और मुहावरों की चलती भाषा का सुन्दर उपयोग कर उसमें बल एवं सौन्दर्य का संचार किया | डॉ० शकरदयाल चौऋषि के शब्दों में :
"उन्होने भाषा का परिमार्जन, स्वरूप-संगठन तथा वैयाकरणी भूलो का परिहार करके शुद्ध, व्यावहारिक एवं वैधानिक भाषा की प्राण-प्रतिष्ठा की । वाक्य-रचना, वाक्य-विन्यास, विराम चिह्नों, प्रघट्टक आदि की हिन्दी में उन्होंने स्थायी व्यवस्था की । उन्होंने भाषा के अन्तर तथा बाह्य स्वरूप में भी एकता लाने का सबल प्रयत्न किया । द्विवेदीजी ने अपनी दूर दृष्टि से हिन्दी के उज्ज्वल भविष्य की देखकर उसे महान् उत्तरदायित्व के वहन करने योग्य बनाने का संकल्प किया था । १
'सरस्वती' के सम्पादक के रूप में द्विवेदीजी को अन्य लेखकों की रचनाओं के सम्पर्क में आने का भरपूर अवसर मिला था । 'सरस्वती' में प्रकाशनार्थ भेजी गई स्वीकृत अथवा अस्वीकृत रचनाओं की पाण्डुलिपियाँ यह प्रमाणित करती है कि उस युग के लेखकों का लेखन भाषागत त्रुटियों से भरा होता था । द्विवेदीजी ने इन सारी त्रुटियों का संशोधन किया । उनके द्वारा किये गये भाषा सुधार का एक महत्त्वपूर्ण अध्याय इन्हीं संशोधनों से निर्मित होता है । द्विवेदीजी ने सबकी रचनाओं का संशोधन किया है, परिवर्तन किया है, कायाकल्प किया है। एक उदाहरण द्रष्टव्य है । पं० गिरिजादत्त वाजपेयी ने एक कहानी लिखी, उसका मूल रूप इस प्रकार था : एक पुराने बुड्ढे पण्डित और उनकी युवा पत्नी
"पण्डितजी की अवस्था करीब ४५ वर्ष की है और स्त्री की २० वर्ष । पण्डितजी बहुत विद्वान् मनुष्य हैं और पुस्तकें लिखी हैं। सप्ताह में दो-एक दिन उन्होंने समाचार या मासिक पत्तों के लिए लेख लिखने को नियत कर लिया । और, १. डॉ० शंकरदयाल चौऋषि : 'द्विवेदी युग की हिन्दी - गद्यशैलियों का अध्ययन, पृ० १५७-१५८ ।