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________________ सम्पादन कला एवं भाषा सुधार [ १०१ श्री श्रीप्रकाशजी के इस संस्मरण से यह बात सामने आती है कि द्विवेदीजी की निगाह में जहाँ भी कोई अच्छी रचना आती थी, वे उसके रचयिता का पता लगाकर 'सरस्वती' में लिखने के लिए उसे आमन्त्रित कर देते थे । अपने लेखकों की प्रतिभा का उन्हें पर्याप्त ज्ञान था । वे अच्छी तरह जानते थे कि किस लेखक से किस विषय पर किस तरह का लेख मिल सकता है । प्रतिभा परखनेवाली इसी शक्ति के द्वारा उन्होंने एक ओर पुराने लेखकों का सहयोग ग्रहण किया, तो दूसरी ओर नये लेखको को भी 'सरस्वती' में प्रस्तुत किया । श्रीसत्यनारायण कविरत्न, मैथिलीशरण गुप्त, राय साहब छोटेलाल, रूपनारायण पाण्डेय, वेंकटेशनारायण तिवारी, लोकमणि, वागीश्वर मिश्र, लोचनप्रसाद, यशोदानन्द अखौरी, नरेन्द्रनारायण सिंह, आनन्दीप्रसाद दूबे, कामताप्रसाद गुरु, रामचन्द्र शुक्ल; लक्ष्मीधर वाजपेयी, गंगानाथ झा, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, देवीदत्त शुक्ल, गोपालशरण सिंह, लाला हरदयाल, गिरिधर शर्मा, लल्लीप्रसाद पाण्डेय, विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक, बंग महिला, बलदेव प्रसाद मिश्र और रामदास गौड़ जैसे कवियों एवं साहित्यसेवियों को द्विवेदीजी ने भारत के विभिन्न स्थानों से खोज निकाला और इन सबको हिन्दी साहित्य का भाण्डार भरने की ओर प्रवृत्त किया । नये लेखकों को द्विवेदीजी न केवल पत्र भेजकर उत्साहित किया करते थे, अपितु सुविधा पाकर वे लेखकों के घर तक जाने से नहीं चूके हैं । लेखक-निर्माण की यह प्रक्रिया वे भारत से बाहर के देशों में भी मक्रिय रूप से करने लगे थे । वे विदेशों में पत्र लिखकर वहाँ स्थित प्रतिभाशाली हिन्दीभाषी लोगों से हिन्दी में लिखने का आग्रह करते थे । उनके इस आग्रह के फलस्वरूप 'सरस्वती' के लिए इंगलैण्ड से डॉ० जायसवाल, सुन्दरताल, सन्त निहाल सिंह, कृष्णकुमार माथुर, फ्रांस से बेनीप्रसाद शुक्ल, अमेरिका से स्वामी सत्यदेव, भोलादत्त पाण्डेय, रामकुमार खेमका, पाण्डुरंग खानखोजे और दक्षिणी अमेरिका से प्रेमनारायण शर्मा, वीरसेन सिंह जैसे लोगो की रचनाएँ आने लगीं । इस प्रकार, द्विवेदीजी के प्रयत्न से देश-विदेश में हिन्दी के लेखक - मण्डल का विकास होने लगा । लेखक-निर्माण करने की उनकी इस प्रवृत्ति के सम्बन्ध में बाबू श्यामसुन्दर दास ने एक बड़े मार्के की बात लिखी है : 1 “एक द्विवेदीजी सोचा कि अँगरेजी पढ़े-लिखे व्यक्तियों को हिन्दी के क्षेत्र में लाना चाहिए । बस 'सरस्वती' के प्रायः प्रत्येक अंक में उनकी साम, दाम, दण्ड, भेद की प्रणालियाँ चल निकलीं और शीघ्र ही उनका यथेष्ट प्रभाव भी दीख पड़ा | हिन्दी मे अंगरेजी के विद्यार्थियों तथा लेखकों की संख्या बढ़ने लगी ।"" १ जिस गति से 'सरस्वती' के लेखकों की संख्या बढ़ने लगी, उसी अनुपात से द्विवेदीजी के काम में वृद्धि होने लगी। जितनी रचनाएँ 'सरस्वती' में प्रकाशनार्थ आती थीं, उन - १. निर्मल तलवार : 'आचार्य द्विवेदी', पृ० ४८ पर उद्धृत ।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
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