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९८ ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व
नाम सार्थक किया । इसके द्वारा हिन्दी साहित्य में अनेकानेक विषयों का उपस्थापन हुआ और हिन्दी भाषी जनता का बौद्धिक विकास भी हुआ। और, 'सरस्वती' की ये सारी उपलब्धियाँ उसके सम्पादक आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी की कला की देन थी ।
लेखक - मण्डल का निर्माण :
'सरस्वती' के सम्पादक के रूप में द्विवेदीजी की सबसे महान् उपलब्धियों में एक है हिन्दी - संसार में अनेक लेखकों का निर्माण | श्रीअम्बिकाप्रसाद वाजपेयी ने लिखा है :
" द्विवेदीजी कोई ३० वर्षों तक 'सरस्वती' के सम्पादक रहे और अपनी विद्वत्ता, परिश्रमशीलता और कार्यदक्षता से उसे उन्नत करते रहे। यही नहीं, उन्होंने बहुतसे लेखक और कवि तैयार कर दिये । कानपुर, जूही में वर्षों तक उनका निवासस्थान एक प्रकार का हिन्दी - लेखक - विद्यालय ही रहा ।"१
अथक गति से नवीन लेखकों तथा कवियों का निर्माण, प्रोत्साहन और मार्गदर्शन द्विवेदीजी ने अपने सम्पादन - काल में किया । वे स्वयं साहित्य के इतने श्रेष्ठ रचयिता भले न कहे जायँ, परन्तु साहित्य की रचना करनेवालों की रचना करनेवाले महापुरुष के रूप में उनकी महत्ता से किसी को इनकार नहीं हो सकता है । 'सरस्वती' का सम्पादन अपने हाथ में लेने के बाद इस पत्रिका की जो विविध विषय-मण्डिड रूपरेखा द्विवेदीजी ने बनाई, उसके अनुकूल लेखकों का उस समय हिन्दी-संसार में अभाव था । एक ओर अधिकांश विषयों पर लिखनेवाले लेखक नहीं थे और दूसरी ओर लेखकों की भाषा-शैली, विचार - सरणि आदि द्विवेदीजी की कसौटी पर खरी नहीं उतरती थी । इस कारण 'सरस्वती' में प्रकाशनार्थ आनेवाली अधिकांश रचनाओं को द्विवेदीजी इस आधार पर अस्वीकृत कर देते थे कि उनका विषय प्रतिपादन एवं स्तर 'सरस्वती' के अनुकूल न होकर निम्न है । सम्पादन- काल के प्रारम्भ में इस पत्रिका को आदर्श बनाने के लिए द्विवेदीजी अथक परिश्रम करते थे । अपने वास्तविक नाम अथवा
अनेक कल्पित नामों से रचनाएँ प्रकाशित कर उन्हें लगभग पूरी 'पत्रिका' अकेले दिखनी पड़ती थी । उस समय स्तरीय लेखकों का कैसा अभाव था एवं 'सरस्वती के स्तर निर्वाह के लिए द्विवेदीजी ने कितना परिश्रम किया, इसका सहज अनुमान सन् १९०३ ई० में प्रकाशित अंकों में छपी रचनाओं की इस संख्या- सूची से लगाया जा सकता है :
१. श्रीअम्बिकाप्रसाद वाजपेयी : 'समाचार-पत्रों का इतिहास', पृ० ३१३ ।