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________________ आदिनाथ-चरित्र प्रथम पर्व और रम्य भुवन में मैं कहाँ से आया हूँ ?' उसके मन में इस तरह के तर्क-वितर्क उठ ही रहे थे, कि इतने में प्रतिहार ने उसके पास आकर और हाथ जोड़कर इस प्रकार विज्ञप्ति की:-- *HESIREF७ TERES* ललितांग देवका प्रतिहारी द्वारा कहा हुआ स्वरूप *HEROIN U SA "हे नाथ! आप जैसे स्वामी को पाकर आज हम धन्य और सनाथ हुए हैं। इसलिये विनम्र और आज्ञाकारी सेवकों पर अमृत-समान दृष्टि से कृपा कीजिये। सब तरह के मन-चाहे पदार्थ देनेवाला,अक्षय लक्ष्मी वाला और सब सुखों का स्थानयह ईशान नामका दूसरा देवलोक है। जिस विमान को आप इस समय अलंकृत कर रहे हैं, इस श्रीप्रभ नाम के विमान को आपने पुण्य-बल से पाया है । आप की सभा के मण्डन-रूप ये सब सामानिक देव हैं, जिन में से आप एक हैं, तोभी आप इस विमान में अनेक की तरह दीखते हैं। हे स्वामिन् ! मंत्र के के स्थान-रूप ये तेतीस पुरोहित-देव हैं। ये आप की आज्ञा की प्रतीक्षा कर रहे हैं, इसलिए आप इनको समयोचित आदेश कीजिये । हँसी-दिल्लगी करनेवाले परिषद नामक देव हैं, जो लीला और विलास की बातों से आपका दिल बहलायेंगे । निर
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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