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आदिनाथ चरित्र
દૂ
प्रथम पर्व
उस मांस को गिद्ध पक्षी लेकर उड़ गया- -उभय भ्रष्ट होकर अपने आत्मा को ठगते हैं या पाखण्डियों की खोटी शिक्षा को सुनकर और नरक से डरकर, मोहाधीन प्राणी व्रत प्रभृति से अपने शरीर को 'दण्ड देते हैं । और लावक पक्षी पृथ्वी पर गिरने की शंका से जिस तरह एक पाँव से नाचता है; उसी तरह मनुष्य नरकपात की शंका से तप करता है ।"
स्वयं बुद्ध बोला-'अगर वस्तु सत्य न हो, तो इससे अपने काम करनेवाला अपने कामका कर्त्ता किस तरह हो सकता है ? यदि माया है, तो सुपने में देखा हुआ हाथी काम क्यों नहीं करता ? अगर तुम पदार्थों के कार्यकारण भाव को सच नहीं मानते, तो गिरने वाले वज्र से क्यों डरते हो ? अगर यही बात है, तो तुम और मैं - वाच्य और वाचक कुछ भी नहीं हैं । इस दशा में, व्यवहार को करने वाली इष्ट की प्रतिपत्ति भी किस तरह हो सकती है ? हे देव ! इन वितण्डवाद में पण्डित, सुपरिणाम से पराङ्मुख, और विषयाभिलाषी लोगों से आप ठगे गये हैं; इसलिये विवेक का अवलम्बन करके विषयों को त्यागिये एवं इस लोक और परलोक के सुख के लिऐ धर्म का आश्रय लीजिये ।'
इस तरह मन्त्रियों के अलग-अलग भाषण सुनकर, प्रसाद से सुन्दर मुँहवाले राजा ने कहा - "हे महाबुद्धि स्वयं बुद्ध !. तुमने बहुत अच्छी बातें कहीं । तुमने धर्म ग्रहण करने की सलाह दी है, वह युक्ति युक्त और उचित है । हम भी धर्म -