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प्रथम पर्व
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आदिनाथ चरित्र
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साथ, निःशङ्क रमण
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पुनर्जन्म नहीं होता । जो प्राणी मरते हैं, वे ही फिर जन्म लेते हैं, ऐसा कहना सर्वथा युक्तिशून्य है, कहने भर की बात है । इस बात में कुछ भी तथ्य नहीं है। 1 सिरस के फूल - ज -जैसी कोमल शय्या पर रूपलावण्यवती सुन्दरी रमणियों के करते हुए और अमृत-समान भोज्य और पेय पदार्थों को यथारुचि आस्वादन करते हुए अपने स्वामी को जो कोई रोकता हैइन सब भोगों के भोगने का निषेध करता है, उसे स्वामी का वैरी समझना चाहिए | हे स्वामिन् ! मानो आप सौरभ्य-सुगन्ध ही से पैदा हुए हों, इस तरह आप कपूर, चन्दन, अगर, कस्तूरी और चन्दनादि से रात-दिन व्याप्त रहिये - दिवारात उन्हीं का आनन्द उपभोग कीजिये । हे राजन् ! नेत्ररञ्जन करने या आँखों को सुख देने के लिए उद्यान, वाहन, किला और चित्रशाला प्रभृति जो जो पदार्थ सुन्दर और मनोमुग्धकर हों, उनको बारम्बार देखिये । हे स्वामिन्! वीणा, वेणु, मृदंग, आदि बाजों के साथ गाये जानेवाले गीतों का मधुर शब्द अपने कानों में, रसायन की तरह, ढालते रहिये । जबतक जीवन रहे, तब तक विषय-सुख भोगते हुए जीना चाहिए और धर्म - कार्य के लिए छटपटाना न चाहिये, क्योंकि धर्म-अधर्म का कुछ भी फल नहीं है, अर्थात् धर्म-अधर्म कोई चीज़ नहीं; अतः इनका फल भी नहीं । जितने दिन ज़िन्दगी रहे, उतने दिन मौज करनी चाहिये | आनन्दमग्न रहकर जीवन यापन करना चाहिये ।