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आदिनाथ चरित्र
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प्रथम पवं
होनेके बाद ग्राम, खान, नगर, अरण्य, गिरि और द्रोणमुख आदि सभी स्थानोंमें जा-जाकर धर्मदेशनासे भव्य प्रणियोंको प्रबोध देते हुए परिवार सहित लक्ष- पूर्व पर्यन्त विहार किया अन्तमें उन्होंने भी अष्टापद पर्वत पर जाकर विधिसहितं चतुर्विध आहारका प्रत्याख्यान किया। एक मासके अन्तमें जब चन्द्रमा श्रवण नक्षत्र में आया, तब अनन्त चतुष्क ( अनन्त - ज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्त चारित्र और अनन्त- -वीर्य) सिद्ध हुआ हैं जिनका, ऐसे वे महर्षि सिद्धिक्षेत्रको प्राप्त हुए ।
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इस प्रकार भरतेश्वरने सतहत्तर पूर्वलक्ष कुमारावस्था में बिताया उस समय भगवान् ऋषभदेवजी पृथ्वीका प्रतिपालन कर रहे थे भगवान् दीक्षा लेकर हज़ार वर्षतक छद्मस्थ अवस्था में रहे। इन्होंवे एक हज़ार वर्ष मांडलिकतामें बिताये | हज़ार वर्ष कम छः लाख पूर्व तो इन्होंने चक्रवर्त्ती रहकर बिताये । केवलज्ञान उत्पन्न होने के बाद विश्वके कल्याणके लिये वे दिवसमें प्रकाशित होने वाले सूर्यकी तरह एक पूर्व तक पृथ्वीपर विहार करते रहे। इस कार चौरासी पूर्वलक्षकी आयु भोगकर, महाराज भरतने मोक्ष पाया। तत्काल उसी समय हर्षसे भरे हुए देवताओंके साथ-साथ. स्वर्ग-पति इन्द्रने भी उनकी मोक्षमहिमा गायी ।
समाप्त । ससससस स