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प्रथम पर्व
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आदिनाथ चरित्र
क्योंकि उससे मेरा वह पाप, जो व्रतभंगके कारण पैदा हुआ है, वृद्धिको प्राप्त होगा । अब मैं अपने उपचारके लिये किसी अपने ही समान मन्द धर्मवाले पुरुषकी खोज करूँ; क्योंकि मृगके साथ. मृगका ही रहना ठीक होता है। इस प्रकार विचार करते हुए कितने ही समय बाद मरिचि रोग मुक्त हो गया क्योंकि 'वारी जमीन भी कुछ कालमें आप से अ - आप अच्छी हो जाती है
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एक दिन महात्मा ऋषभस्वामी जगत्का उपकार करनेमें वर्षा ऋतु मेघ के समान देशना दे रहे थे। उसी समय वहाँ कपिल नामका कोई दुष्ट राजकुमार आकर धर्मकी बातें सुनने लगा; पर जैसे चक्रवाकको चाँदनी अच्छी नहीं लगती, उल्लूको दिन नहीं अच्छा लगता, अभागे रोगीको दवा नहीं अच्छी लगती, वायुरोगवालेको ठंढी चीजें नहीं सुहातीं और बकरेको मेघ नहीं अच्छा लगता, वैसेही उसे भी प्रभुका धर्मोपदेश नहीं भाया । दूसरी तरहकी धर्म देशना सुननेकी इच्छा रखनेवाले उस राजकुमारने जो इधर-उधर दृष्टि दौड़ायी, तो उसे विचित्र वेषधारी मरिचि दिखलाई दिया । जैसे बाज़ार में चीजें मोल लेनेको गया हुआ बालक बड़ी दूकानसे हटकर छोटी दुकान पर चला आये, उसी प्रकार दूसरे ढङ्गकी धर्म देशना सुनने की इच्छा रखनेवाला कपिल भी स्वामीके निकटसे उठकर मरिचिके पास चला आया। उसने मरिचिसे धर्मका मार्ग पूछा। यह सुन, उसने कहा,“भाई ! मेरे पास धर्म नहीं है। यदि इसकी चाह हो, तो स्वामीजीकी ही शरण में जाओ ।” मरिचिकी यह बात सुन, कपिल