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आदिनाथ-चरित्र ४६४
प्रथम पर्व बदलते थे, कि दर्शकोंको यह मालूमही नहीं पड़ता था, कि अमुक व्यक्ति ऊपर है या नीचे । बड़े भारी सर्पकी भाँति वेः एक दूसरेके.बन्धन-रूप हो जाते थे और तत्काल ही चंचल बन्दरोंकी तरह अपना पीछा छुड़ाकर अलग हो जाते थे। बारम्बार पृथ्वी पर लोटनेसे दोनोंकी देहमें खूब धूल-मिट्टी लग गयी, जिससे वे धूलिमद वाले हाथी मालूम होते थे। चलते हुए पर्वतोंकी तरह उन दोनोंके भारको नहीं सह सकनेके कारण पृथ्वी मानों उनके ‘पदाघातके शब्दके मिषसे रो रही थी, ऐसा मालूम पड़ता था।
अन्तमें क्रोधसे तमतमाये हुए अमित पराक्रमी बाहुबलीने, शरभ जिस प्रकार हाथीको पकड़ लेता है, वैसेहो चक्रवर्तीको पकड़ लिया और हाथी जैसे सूढ़से उठाकर पशुको ऊपर उछालता है, वैसेही हाथसे उठाकर उन्हें आसमानमें उछाल फेंका। सच है, बलवानों में भी बलवानको सदा उत्पत्ति होती रहती है। धनुष. " से छूटे हुये बाणकी तरह और यंत्रसे छोड़े हुए पाषाणकी भांति राजा भरत आकाशमें बड़ी दूरतक चले गये । इन्द्रके छोड़े हुए वज्रकी तरह वहाँसे गिरते हुए चक्रवर्तीको देख डरके मारे सभी संग्राम दी खेचर भाग गये और उस समय दोनों सेनाओं में हाहाकार मच गया; क्योंकि बड़े लोगों पर आपत्ति आती देख भला किसे दुःख नहीं होता ? उस समय बाहुबली सोचने लगे,—“ओह ! मेरे बलको धिक्कार है, मेरी भुजाओंको धिक्कार है, इस प्रकार बिना समझे-बूझे काम करने वाले मुझको धिक्कार है। . और इस कृत्य के करने वाले दोनों राज्योंके मन्त्रियोंको धिकार है:-पर नहीं