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प्रथम पर्व
आदिनाथ-चरित्र तुम पृथ्वीको अपनी गोदमें रख लो। हे कमठ ! अपने वज्रकेसे अङ्गोंको चारों ओरसे सिकोड़ कर, पीठको दृढ़कर पृथ्वीका भार वहन करो। हे दिग्गजो ! पहलेकी तरह प्रमाद या मदसे निद्राके वशमें न आकर खूब सावधानीके साथ वसुधाको धारण करो। क्योंकि यह वज्रसार बाहुबली चक्रवर्तीके साथ बाहुयुद्ध करने जा रहे हैं। ___ थोड़ी ही देर बाद वे दोनों महामल्ल बिजलीसे ताड़ित पर्वत के शब्दकी भाँति अपने हाथोंसे तालियाँ पीटने लगे। लीलासे पदन्यास करते और कुण्डलोंको हिलाते हुए वे एक दूसरेके सामने चलने लगे। उस समय वे ऐसे मालूम पड़े, मानों वे धातकी खण्डसे आये हुए दोनों ओर सूर्य-चन्द्रसे शोभित दो मेरु-पर्वत हों। जैसे मदमें आकर दो बलवान् हाथी अपने दांतोंको टकराते हैं , वैसेही वे दोनों परस्पर हाथ मिलाने लगे। कभी थोड़ी देरके लिये परस्पर भिड़ते और कभी अलग हो जाते हुए वे दोनों वीर प्रचण्ड पवनसे प्रेरित दो बड़े-बड़े वृक्षोंकी तरह दिखाई देने लगे। दुर्दिन में खलबलाते हुए समुद्रकी तरह वे कभी तो उछल पड़ते और कभी नीचे आ रहते थे। मानों स्नेहसे ही हो, इस प्रकार वे दोनों क्रोधसे एक दूसरेको अङ्ग-से-अङ्ग मिलाकर बाते
और अलिङ्गन करते थे। साथही जैसे कर्मके बशमें पड़ा हुआ प्राणी कभी नीचे और कभी ऊपर आता जाता है, वैसेही वे दोनों भी युद्ध विज्ञानके वशमें होकर ऊपर नीचे आते जाते थे। जलमें रहने वाली मछलीकी तरह वे इतनी जल्दी-जल्दी पहलू