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आदिनाथ-चरित्र
प्रथम पर्व गये और भरत क्षेत्रके छहों खण्डोंकी विजय करके प्राप्त को हुई बड़ी कीर्त्तिको उनके नेत्रोंने आँसुओंके बहाने पानीमें डाल दिया, ऐसा मालूम पड़ा। प्रातःकाल हिलते हुए वृक्षोंकी तरह सिर हिलाते हुए देवताओंने उससमय बाहुबलीके ऊपर फूलोंकी वर्षा की। सूर्योदय के समय पक्षी जिस प्रकार कोलाहल कर उठते हैं, वैसेही बाहुबलीकी विजय होते ही सोमप्रभ आदि वीरोंने हर्षसे कोलाहल करना शुरू किया। कीर्तिरूपी नर्तकीने मानों नृत्य प्रारम्भ कर दिया हो, वैसेही तैयार खड़े बाहुबलीके सैनिकोंने जयके बाजे बजाने शुरू किये। भरत रायके वीर तो ऐसे मन्द-पराक्रम हो गये, मानों सबके सब मूर्छित. हो गए हों,सो गये हों या रोगातुर हो गये हों। अन्धकार और प्रकाशवाले मेरु-पर्वतके दोनों पार्थों की तरह एक सेनामें खेद और दूसरीमें हर्ष फैल गया। उस समय बाहुबलीने चक्रवर्तीसे कहा,"देखना, कहीं यह न कह बैठना, कि मैं कालतालीय न्यायसे जीत गया हूँ। यदि जीमें ऐसी हीधारणा हो, तो अबके वाणीसे युद्ध करके देख लो।" बाहुबलीकी यह बात सुन, पैरसे कुचले हुए सांपकी तरह क्रोधसे भरकर चक्रवर्तीने कहा,-"भलाइस तरह भी तो जीत जाओ।" .. . तदनन्तर जैसे ईशानइन्द्रका वृषभ नाद करता है, सौधर्म इन्द्रका हाथी गरजता है और मेघ उनकता है, वैसेही मरत राजाने भी घोर सिंहनाद किया। जैसे बड़ी नदीमें बाढ़ आने पर उसके दोनों किनारे पानीसे लबालब भर जाते हैं, वैसेही