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________________ आदिनाथ-चरित्र प्रथम पर्व mami करनेसे लोग यही कह-कह कर आपकी प्रशंसा करेंगे, कि आप शक्तिमान होते हुए भी विनयी हैं। भरत राजाने जो भरतक्षेत्रके छहों खण्ड जीत लिये हैं, उनका आप स्वयं जीते हुए देशोंकी तरह भोग कीजिये; क्योंकि आप दोनोंमें कोई अन्तर नहीं है । ऐसा कहकर जब मेघकी तरह देवगण चुप हो गये, तब बाहुबलीने जरा मुस्करा कर गम्भीर वाणीसे कहा, "हे देवताओं ! आप लोग हमारे युद्धके असल कारणको जाने बिना ही अपनी स्वच्छहृदयताके कारण ऐसा कह रहे हैं। आप लोग हमारे पिताके भक्त हैं और हम दोनों उनके पुत्र हैं ; इस सबन्धले आप लोगोंका ऐसा कहना उचित ही है। इससे पहले दीक्षा ग्रहण करते समय पिताजीने जिस प्रकार याचकोंकोसोना आदि दिया, उसी प्रकार मुझे और भरतकोभी देशोंका विभाग करके दिया। मैं तो उनके दिये हुए राज्यसे सन्तुष्ट होकर रहा; क्योंकि महज़ धन के लिये दूसरोंसे द्रोह कौन करे ? परन्तु जैसे समुद्रकी बड़ी-बड़ी मछलियाँ छोटी मछलियोंको निगल जाती हैं। वैसेही इस भरतक्षेत्ररूपी समुद्रके सब राजाओंके राज्योंको राजा भरतने निगल लिया। जैसे मरभुक्खा मनुष्यको कितना भी खानेको मिले, पर वह सन्तुष्ट नहीं होता, वैसेही उतने राज्योंको पाकर भी उन्हें सन्तोष नहीं हुआ और उन्होंने अपने सब छोटे भाइयोंके राज्य भी हड़प कर लिये। जब उन्होंने पिताके दिये हुए राज्यको छोटे भाइयों से छीन लिया तब तो उन्होंने अपना बड़प्पन मानों अपने आप ही खो दिया। बड़प्पन केवल उमरसे ही नहीं माना जाता, बल्कि
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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