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आदिनाथ-चरित्र
प्रथम पर्व असंख्य समुद्र और असंखा द्वीपरूपी कंकणों एवं वज्रवेदिका से परिवेष्टित एक द्वीप है। उसका नाम जम्बूद्वीप है। वह अनेक नदियों और विर्षधर-पर्वतों से सुशोभित है। उस द्वीप के बीच में स्वर्ण-रत्नमय मेरु नामक पर्वत है। वह उसकी नाभि के समान शोभायमान है और वह एक लाख योजन ऊँचा है। तीन मेखलायें उसकी शोभा बढ़ाती हैं । उसपर चालीस योजन की चूलिका-समतल भूमि है । वह श्री अर्हन्तोंके मन्दिरों से जगमगा रही है। उसके पश्चिम ओर विदेहक्षेत्र है। उस क्षेत्रमें भूमण्डलके भूषण-समान क्षिति-प्रतिष्ठितपुर नामका एक नगर है।
उस नगर में, किसी समय में, प्रसन्नचन्द्र नामका राजा राज्य करता था। वह नरपति धर्म-कर्म में आलस्य-रहित था। महान ऋद्धियों के कारण, वह इन्द्र की भाँति शोभायमान था। उस राजा के नगर में धन नामका एक साहूकार था। जिस तरह अनेकों नदियाँ समुद्र में आकर आश्रय लेती हैं; उसी तरह नाना प्रकार की धनराशियोंने उसके यहाँ आश्रय ग्रहण किया था। उसके पास अनन्त धन-सम्पत्ति थी, जो चन्द्रकी चन्द्रिका की तरह छोटे-बड़े, नीचे-ऊँचे सभी का उपकार साधन करती थी; अर्थात् उसकी सम्पत्ति परोपकार के कामों में ही खर्च होती थी।
वर्ष-क्षेत्र उसको अलग करने वाला वर्षधर-पर्वत।
पहली मेखला में नन्दन वन,दूसरी मेखला में सोमनस वन और तीसरी मेखलामें पांडुक वन है।