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प्रथम पर्व
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आदिनाथ चरित्र
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के वशवत होकर अपने प्राण देकर भी राजाका प्रिय करनेकी इच्छा प्रकट करते हुए देखा। युद्धकी बात सुन और लोगों की यह तैयारी देख, बाहुबली पर अटूट भक्ति रखने वाले कितने ही पहाड़ी राजा भी बाहुबली के पास आने लगे । ग्वालेका शब्द सुनकर जैसे गौए दौड़ी हुई चली आती हैं, वैसे ही उन पहाड़ी राजाओं के बजाये हुए सिंघेकी आवाज़ सुनते ही हज़ारों किरात, निकुंजोंसे निकल-निकल कर दौड़ते-हाँपते हुए आनें लगे शूर-वीर किरातोंमें कोई बाघकी त्वचासे कोई मोरकी पोछोसे और कोई लताओंसे ही जल्दी-जल्दी अपने बाल बाँधने लगे 1 इसी तरह कोई सर्पकी त्वचासे, कोई वृक्षों की त्वचासे और कोई नील गायकी त्वचा से अपने शरीर में पहने हुए मृगचर्मको बाँधने लगे । बन्दरोंकी तरह कूदते - फाँदते हुए वे लोग हाथमें पाषाण और धनुष लिए हुए स्वामिभक्त श्वानोंकी तरह अपने स्वामीको घेर कर चलने लगे । वे सब आपस में कह रहे थे, कि हम राजा भरतकी एक-एक अक्षौहिणी सेनाको चूर्ण कर अपने महाराज बाहुबलीको कृपाका वदला अवश्य देंगे ।
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उनकी ऐसी सकोप तैयारी देख, सुवेग मन-हो-मन विवेकबुद्धिसे विचार करने लगा, – “ओह ! इस बाहुबली के देशके -लोग तो इसके ऐसे वशीभूत हैं, कि मालूम होता है, मानों ये अपने बापके वैरीसे बदला लेनेके लिए तत्परताके साथ युद्धकी - तैयारी कर रहे हैं । राजा बाहुबलीकी सेनाके पहले ही रणकी इच्छा करने वाले ये किरात भी इस तरफ आने वाली हम्मरी
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