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आदिनाथ-चरित्र
प्रथम पर्व आज्ञा दे दी हो। जैसे योगी शरीरको दृढ़ करते हैं, वैसे ही कोई तो अपना युद्ध-रथ रथशालासे बाहर निकालकर उसमें नये धूरे आदि लगाकर उसे दृढ़ बना रहा था, कोई अपने घोड़ोंको नगरके बाहर मैदानमें ले जाकर उन्हें पाँचों प्रकारकी चाले सि. खला कर युद्धके लिये तैयार करता हुआ विश्राम करा रहा था ;. कोई प्रभुकी तेजोमयी मूर्त्तिके समान अपने खड्ग आदि हथियारों को सान धराने वालेके यहाँ ले जाकर तेज़ करा रहा था ; कोई अच्छे-अच्छे सींग और नयी ताँत लगवा कर अपने यमराजकी टेढ़ी भौहोंके समान धनुषोंको तैयार कर रहा था; कोई युद्धयात्रा के समय जानदार बाजोंका काम देनेवाले जङ्गली ऊँटोंको कवच आदि ढोनेके लिये ला रहा था; कोई अपने बाणोंको, कोई तरकस को, कोई सिर पर पहननेकी टोपीको, उसी प्रकार दृढ़ कर रहा था,जैसे तार्किक पुरुष अपने सिद्धान्तको दृढ़ करते हों । इसी तरह कोई-कोई अपना बख्तर दृढ़ होने पर भी विशेष दृढ़ बना रहे थे। इसी तरह कोई गन्धर्वो के भवनके समान घरमें धरे रखे हुए तम्बूकनातोंको खोल-खोल कर देख रहे थे । राजा बाहुबलीके देशके लोग इसी प्रकार एक दूसरेसे स्पर्धा करते हुए युद्ध के लिये तैयारी कर रहे थे ; क्योंकि वे अपने राजा पर बड़ी भक्ति रखते थे । ऐसा ही कोई राजभक्तिकी इच्छा रखनेवाला मनुष्य, संग्राम में जाने के लिये तैयार हो रहा था, इसी समय उसके किसी 'गुरुजनने आकर उसे मना किया। इसपर वह बिगड़ उठा। सुवेगने रास्ते में जाते-जाते लोगोंको इसी प्रकार राजाके अनुराग