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प्रथम पर्व
४०३ आदिनाथ-चरित्र अविनयकी असह्यता भी मेरे लिये अपवाद-रूप है। अभिमानसे भरे हुए लोगोंका शासन करना राजधर्म अवश्य है ; पर भाइयों में परस्पर मेल-जोल रहना चाहिये, यह भी तो व्यवहारकी बात है ? इस लिये मैं तो इस मामलेमें बड़ी दुविधामें पड़ गया।"
मन्त्रीने कहा,-"महाराज! आपका यह सङ्कट आपके महत्त्व को देखकर आपका छोटा भाई ही दूर कर सकेगा। सामान्य गृहस्थोंमें भी यह चाल है, कि बड़ा भाई जो आज्ञा देता हैं, उसे छोटा भाई मान लेता है। अतएव आप भी अपने छोटे भाईके पास लोक रीतिके अनुसार दूत भेजकर उन्हें आज्ञा दें। महाराज! जैसे केशरी (सिंह) अपने कन्धेपर खोगीर नहीं सहन कर सकता, वैसे ही यदि आपका वह छोटा भाई, जो अपनेको बड़ा वीर समझता है, आपकी जगन्मान्य आज्ञाको नहीं माने, तो आपको भी उसे उचित शिक्षा देनी ही पड़ेगी ; क्योंकि आपमें इन्द्रका सा पराक्रम भरा हुआ है। ऐसा करनेसे न तो लोकाचारका ही उल्लंघन होगा, न आपकी लोकमें बदनामी होगी।" ___ महाराजने मन्त्रीका यह वचन स्वीकार कर लिया ; क्योंकि शास्त्र और लोकव्यवहारके अनुसार कही हुई बातें मानही लेनी चाहिये। इसके बाद उन्होंने नीतिज्ञ, दृढ़ और वाक्चतुर दूत सुवेगको सिखा-पढ़ाकर बाहुबलीके पास भेजा। अपने स्वामी की वह उत्तम शिक्षा, दीक्षाकी भाँति अङ्गीकार कर वह दूत रथ पर आरूढ़ हो, तक्षशिलाकी ओर चल पड़ा। ... सब सैन्योंको साथ लिये हुए, अत्यन्त वेगयुक्त रथमें बैठा