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आदिनाथ चरित्र
प्रथम पर्व
गये, तबसे यह सुन्दरी केवल प्राणरक्षणके निमित्त आम्बिल तप कर रही है। आपने इसे दीक्षा लेनेको मना कर दिया था, इसीलिये यह भावदीक्षित होकर रहती आयी है ।"
यह सुन, राजाने सुन्दरीकी ओर देखकर पूछा, "हे कल्याणी ! क्या तुम दीक्षा लेना चाहती हो ? "
सुन्दरीने कहा, “ हाँ !”
यह सुन, भरतरायने कहा, -- “ ओह ! केवल प्रमाद और सर. लता कारण मैं अबतक इसके व्रतमें विघ्नकारी बनता आया । यह बेटी तो ठीक पिताजीके ही समान निकली और मैं उन्हीं का पुत्र होकर सदा विषयोंमें आसक्त और राज्य में अतृप्त बना रहा । यह आयु समुद्रको जलतरंगकी तरह नाशवान् है, परन्तु विषयभोग मैं पड़े हुए मनुष्य इसे नहीं जानते। देखते-ही-देखते नाशको प्राप्त हो जानेवाली बिजलीके सहारे जैसे रास्ता देख लिया जाता है, वैसे ही इस चंचल आयुमें भी साधु-जनोंको मोक्षकी साधना कर लेनी चाहिये । मांस, विष्ठा, मूत्र, मल, प्रस्वेद और व्यात्रियोंसे भरे हुए शरीरको सँवारना - सिंगारना क्या है, घरकी मोरीका शृङ्गार करना है। प्यारी बहन ! शाबाश! तुम धन्य हो, कि इस शरीर के द्वारा मोक्षरूपी फलको उत्पन्न करनेवाले व्रतको ग्रहण करनेकी इच्छा तुम्हारे मनमें उत्पन्न हुई । चतुर लोग खारी समुद्रमेंसे भी रत्न निकाल लेते हैं ।" यह कह, महाजिसमें खट्ट े, चरपरे. गरम और भारी पदार्थ
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* एक धार्मिक नहीं खाये जाते !
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व्रत,