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आदिनाथ-चरित्र
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इथम पर्व
इन दोनोंके इकट्ठे होनेसे, सारा मृत्युलोक एक स्थानमें पिण्डीभूत हुआ सा जान पड़ता था। सेना और आये हुए लोगों की भीड़से उस समय तिलका दाना भी फेंकनेसे जमीन पर न पड़ता था। कितने ही लोग भाटोंकी तरह खड़े होकर खुशीसे स्तुति करते थे। कोई कोई चंचल भँवरोंकी तरह अपने वस्त्राञ्चलसे हवा करते थे। कोई मस्तक पर अञ्जलि जोड़ कर सूर्यकी तरह नमस्कार करते थे । कोई मालाकार रूपमें फल और फूल अर्पण करते थे। कोई कुलदेवकी तरह उनकी वन्दना करता था और कोई गोत्रके बूढ़े आदमीकी तरह उन्हें आशीर्वाद देता था।
अयोध्या नगरीमें प्रवेश । जिस तरह ऋषभदेव भगवान् समवशरणमें प्रवेश करते हों, इस तरह महाराजने चार दरवाजेवाली अपनी नगरीमें पूरवी दरवाजेसे प्रवेश किया। लग्न-घड़ीके समय एक साथ बाजोंकी आवाज हो, इस तरह उस समय प्रत्येक मञ्च पर संगीत होने लगा। महाराज आगे चले, तब राजमार्गके घरोंमें रहनेवाली स्त्रियाँ हर्षसे दृष्टिके समान धानी उड़ाने लगीं। पुरवासियों द्वारा फूलों की वर्षासे ढका हुआ महाराजका हाथी पुष्पमय रथ-जैसा बन गया । उत्कंठित लोगोंकी अत्यन्त उत्कंठा देखकर चक्रवर्ती :राजमार्गमें धीरे-धीरे चलने लगे। लोग हाथीसे न डर कर, महाराजके पास आकर फल वगैरह