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आदिनाथ-चरित्र
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प्रथम पर्व द्रोणमुख, मंडप और पत्तन आदि स्थानोंका निर्माण होता है; यानी ये सव स्थान तैयार होते हैं । पांडुक नामकी निधिसे मान, उन्मान और प्रमाण-इन सबकी गणित और बीज तथा धान्य या अनाजकी उत्पत्ति होती है। पिंगल नामकी निधिले नर, नारी, हाथी और घोड़ोंके सब तरहके आभूषणोंकी विधि जानी जा सकती है। सर्वरत्नक नामकी निधिसे चक्ररत्न ओदि सात एकेन्द्रिय और सात पंचन्द्रिय रत्न पैदा होते हैं। महापद्म नामकी निधिसे सब तरहके शुद्ध और रंगीन वस्त्र तैयार होते हैं। काल नामकी निधिसे भूत, भविष्यत और वर्तमान कालका ज्ञान, खेती प्रभृति कर्म एवं अन्य शिल्प-कारीगरीके कामोंका ज्ञान होता है। महाकालकी निधिसे प्रवाल-मूगा, चाँदी, सोना, मोती, लोहा तथा लोह प्रभृति धातुओंकी खान उत्पन्न होती है। माणव नामक निधिसे योद्धा - आयुध, हथियार और कवच-ज़िरहवख्तरकी सम्पत्तियों तथा सब तरहकी युद्ध-नीति और दण्ड-नीति प्रकट होती हैं । नवीं शंखक नामकी महानिधिसे चार प्रकारके काव्योंकी सिद्धि, नाट्य-नाटककी विधि और सब तरहके बाजे उत्पन्न होते हैं। इस प्रकारके गुणोंवाली नौ निधियाँ आकर कहने लगी कि, “हे महाभाग! हम गंगाके मुखमें मागधतीर्थकी निवासिनी हैं। आपके भाग्यके वश होकर, आपके पास आई हैं; इसलिये अपनी इच्छानुसार-अविश्रान्त होकर-हमारा आप भोग लीजिये और दीजिये । कदाचित समुद्र भी क्षयको प्राप्त हो जाय, समुद्र भी