SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 398
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम पर्व आदिनाथ चरित्र पहुँचते ही, पहले की तरह, दोंनों नदियों पर पुलिया और पगदण्डी बना, चक्रवर्त्ती सेना समेत पार हो गये I सेनाके शल्यसे दुखित हो वैताढ्य पर्वतने प्रेरणा की हो, इस तरह गुफाके दक्खनी द्वारा तत्काल आप-से प-से-आप खुल गये । केशरी सिंहके समान नरकेशरी भरत महाराज गुफाके बाहर निकले और गंगा पश्चिमी किनारे पर उन्होंने पड़ाव डाला । 1 नौ निधानकी प्राप्ती । वहाँ नौनिधानको उद्देश करके पृथ्वीपतिने पहले के तपसे उपार्जन की हुई लब्धियोंसे होनेवाले लाभके मार्गको दिखाने वाला अष्टम तप किया । अष्टमके शेषमें नौनिधि प्रकट हुए और चक्रवर्त्ती के पास आये। उनमेंसे प्रत्येक निधि एक एक हज़ार यक्षोंसे अधिष्ठित थे । उन नौ निधियों के नैसर्ग, पाँडुक, पिंगल, सर्वरत्नक, महापद्म, काल, महाकाल, माणव और शंखक ये नाम थे 1 आठ चक्रों पर वे प्रतिष्ठित थे । वे आठ योजनचौंसठ मील ऊँचे, नौ योजन - बहत्तर मील विस्तृत और दश योजन - अस्सी मील लम्बे थे । वैडूर्यमणिके किवाड़ोंसे उनके मुँह के हुए थे } वे एक समान सुवर्ण और रत्नोंसे भरे हुए थे एवं उनपर चक्र, चन्द्र ओर सूर्यके चिह्न थे । उन निधियोंके नामानुसार पल्योयम आयुष्य वाले नागकुमार निकायके देव उनके अधिष्ठायक होकर रहते थे । 1 उनमें से नैसर्ग नामके निधिले छावनी, शहर,. ३ गाँव, खान,
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy