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आदिनाथ-चरित्र
हुए धनुषों को
पथम पर्व भरत के सामने उद्यत हुए। किरातपतियोंने कछुओंकी पीठोंकी हड्डियों से बनाये हों ऐसे दुर्भेद्य कवच - जिरह वख्तर पहने । उन्होंने मस्तक पर लंबे लंबे बाल वाले निशाचरों की शिरलक्ष्मी को बताने वाले एक तरह के बालों से ढकेहुये शिरस्त्राण धारण क्रिये 1 रणोत्साह से उन की देह इस तरह फूलने लगी कि, उस से उनके कवत्रों के जाल टूटने लगे। उनके ऊंचे ऊंचे केश वाले मस्तकों पर शिरस्त्राण रहते न थे, इसलिये मानो हमारी रक्षा कोई दूसरा कर नहीं सकता, इस तरह मस्तकों को अमर्ष करते हों - ऐसे मालूम होते थे। कितने ही कुपित किरात यमराज की भृकुटो जैसे बांके और सींगों से बने लीला से सजा सजाकर धारण करने लगे। कितने ही जयलक्ष्मी की लीला की शय्या की जैसी रणमें दुर्वार और भयङ्कर तलवारों को म्यानों से निकालने लगे । यमरोजके छोटे भाई जैसे कितने ही किरात डण्डों कों ऊचा करने लगे। कितने ही धम्रकेतु-जैसी भालों को आकाश में नचाने लगे। कितने ही रणोत्सव में आमंत्रित किये हुए प्रतराज को खुश करने के शत्रुओं को शूली पर चढ़ानेके हों ऐसे त्रिशूलों को धारण करने लगे । त ही शत्रुरूपी चकवेपक्षियों के प्राणनाश करने वाले बाज पक्षी जैसे लोहे के शल्यों को हाथों में धारण करने लगे । कोई मानो आकाश में से तारामण्डल को गिरनेकी इच्छा करते हों, इस तरह अपने उद्धत हाथों से तत्काल मुद्गर फिरने लगे । जिस तरह बिना बिषके कोई सर्प नहीं होता, इस तरह उनमें से कोई भी हथियार
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