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प्रथम पर्व
आदिनाथ चरित्र
दिशाओं को अन्धकारमय करनेवाले महाराज भरत आगे बढ़ने लगे। उनके रथ के आगे जो मगरों .के मुख लगे हुए थे, वे यमराज नुख को स्पर्धा करते थे। वे घोड़ोंकी टापों की आवाजों से धरती को और जय-बाजों के घोर शब्द से आकाश को फोड़ते हों, ऐसे जान पड़ते थे और आगे आगे चलनेवाले मंगल ग्रह ले जिस तरह ‘सूर्य भयङ्कर लगता हैं ; उसी तरह आगे आगे चलनेवाले चक्र से वे भयङ्कर दीखते थे।
म्लेच्छों के साथ युद्ध करना। उनको आते हुए देखकर किरात लोग अत्यन्त कुपित हुए औ कामहको क्षेत्रीका अनुसरण करने वाले वे इकठे हो कर, माना चावती को हरण करने की इच्छा करते हों, इस तरह क्रोध सहित बोलने लगे- साधारण मनुष्य की तरह लक्ष्मी लज्जा, धोरज और कीर्ति से वर्जित यह कौन पुरुष है, जो बालक की तरह अलर बुद्धि से मृत्युको कामना करता है ? हिरन जिस तरह सिंह की गुहा में जाता है; उसी तरह यह कोई पुण्यचतुदशी-क्षीण और लक्षणहीन पुरुष अपने देश में आया मालूम होता है। महा पवन जिस तरह मेवों को इधर उधर फैंक देता है, उसी तरह इस उद्धत आकार वाले और फैलते हुए पुरुष को अपन लोग दशों दिशाओं में फेंक दें। इस तरह ज़ोर-ज़ोर ले चलते-चिल्लाते हुए इकट्ठ होकर, शरभअष्टपद जिस तरह मेघ के सामने गर्जना करता और दौड़ता है उसी तरह युद्ध करने के लिये