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आदिनाथ-चरित्र
प्रथम पवे
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बलिउत्प। उस समय अखण्ड, तुष-रहित और उज्वल शाल से बनाया हुआ चार प्रस्थ जितना बलि थाल में रखकर, समवसरणके पूर्व द्वार से , अन्दर लाया गया ; अर्थात् उस समय बिना टूटे हुए साफ और सफेद चावलों की चार प्रस्थ प्रमाण बलि थाल में रख कर, समवसरण के पूर्व दरवाजे से भीतर लाई गई। देवता
ओंने उसमें सुगन्धी डालकर उसे दूनी सुगन्धित कर दिया था, प्रधान पुरुष उसे उठाकर लाये थे और भरतेश्वरने .उसे बनवाया था। उसके आगे आगे बजने बाली दु'दुभि से दशों दिशाएं गूंज रही थीं। उसके मंगल गीत गाती गाती स्त्रियों चल रही थीं। मानो प्रभुके प्रभाव से उत्पन्न हुई पुण्यराशि हो, इस तरह वह पौर लोगों से चारों ओर से घिर रहा था। मानों बोने के लिए कल्याण रूपी धान्यका बीजहो, इस तरह वह बलि प्रभु की प्रदक्षिणा कराकर उछाल दिया गया। जिस तरह मेघ के जलको चातक-पपहिया ग्रहण करता है, उसी तरह आकाश से गिरनेवाले उस बलि के आधे भाग को आकाश में ही देवता ओं ने लपक लिया। जो भाग पृथ्वी पर गिरा, उसका आधा भरत राजाने लेलिया और जो बाकी रहा उसे राजाके गोती भाइयोंने आपस में बाँट लिया। उस बलिका ऐसा प्रभाव है, कि उस से पुराने रोग नष्ट हो जाते हैं और छै महीने तक नये रोग पैदा नहीं होते। इसके बाद उत्तर के दरवाजेकी राहसे प्रभु बाहर निकले। जिस तरह पद्म खण्ड के फिरने से भौंरा फिरने