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आदिनाथ चरित्र २७८
प्रथम पर्व निद्रा रहित हो गया। सारी रात आँखसे आँख न लगी। नगर निवासी रात भर जागते रहे। मैं सवेरे ही स्वामीके दर्शनोंसे अपनी आत्मा और लोगोंको पवित्र करूँगा,-ऐसे विचार वाले बाहुबलिको वह रात महीनाके बराबर हो गई। इधर रातके प्रभातमें परिणत होते ही, प्रतिमास्थिति समाप्त होते ही, प्रभु वायु की तरह दूसरी जगहको विहार कर गये भर्थात अन्यत्र चले गये।
बाहुबलि का प्रभुके पास वन्दना करने को जाना
सवेरा होते ही बाहुबलिने उस बाग़की ओर जानेकी तैयारी की, जिसमें रातको भगवान्के ठहरनेकी बात सुनी थी। जिस समय वह चलनेको उद्यत हुआ . उस समय अनेक सूर्योंके समान बड़े बड़े मुकटधारी मण्डलेश्वरोंने उसे चारों ओरसे घेर लिया। उसके साथ अनेकों क्रियाकुशल, शुक्राचार्य प्रभृति की बराबरी करने वाले मूर्त्तिमान अर्थ शास्त्रसदृश मंत्री थे। गुप्त पंखों वाले, गरुड़के समान जगत्को उल्लंघन करनेमें वेगवान्, लाखों घोड़ोंसे घिरा हुआ वह बहुतही शोभायमान दीखता था । झरते हुए मदजल की वृष्टिसे मानो झरने वाले. पर्वत हों, ऐसे पृथ्वीकी रजको शान्त करने वाले हाथियोंसे वह शुशोभित था। पाताल कन्याओं के जैसी, सूर्यको न देखने वाली वसन्त श्री प्रभृति अन्तः पुरकी रमणियाँ उसके आस पास तैयार खड़ी थीं। उसके दोनों ओर चमर धारिणी गणिकायें खड़ी थीं। उनसे वह राजहंस सहित