SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 298
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम पर्व २७३ आदिनाथ-चरित्र राजा और नगर निवासियों का श्रेयांस से प्रश्न करना । ; प्रभुके पारणेसे और उस समय की रत्न वृष्टि से विस्मित हो हो कर राजा और नगर निवासी श्रेयांस के महल में आने लगे 1 कच्छ और महाकच्छ आदि क्षत्रिय तपस्वी प्रभुके पारणे की बातें सुनकर, अत्यन्त प्रसन्न होकर वहाँ आये । राजा और नगर निवासी तथा देशके लोग रोमाञ्चित प्रफुल्लित हो होकर श्रेयॉन्स से इस तरह कहने लगे-“हे कुमार ! आप धन्य हो और पुरुषों में शिरोमणि हो क्योंकि आपका दिया हुआ रस प्रभु ने ले लिया और हम सर्वस्व देते थे, पर प्रभु ने उसे तृणवत् समझकर अस्वीकार कर दिया । प्रभु हम पर प्रसन्न नहीं हुए। ये एक साल तक गाँव, खदान, नगर और जंगल में घूमते रहे, तो भी हममें से किसीका भी आतिथ्य ग्रहण नहीं किया । इसलिये हम भक्त होने के अभिमानियों को धिकार हैं ! हमारे घरमें आराम करना एवं हमारी चीज़ लेना तो दूर की बात है । आज तक वाणी से भी प्रभुने हमको संभावित नहीं किया; अर्थात् हम से दो दो बातें भी न की । जिन्होंने पहले लखों पूर्वतक हमारा पुत्रकी तरह पालन किया है, वे ही प्रभु मानो हम से परिचय या जानपहचानही न हो, इस तरह व्यावहार करते हैं ।" / श्रेयांसका नगर निवासियों को उत्तर देना । लोगों की बातें सुनकर श्रेयांस ने कहा- "तुम लोग ऐसी बातें १८
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy