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आदिनाथ-चरित्र
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प्रथम पर्व
बसाये, उस देशका उन्होंने वही नाम रक्खा । इन सब नगरोंमें, हृदय की तरह, सभाके अन्दर नमि और विनमि ने नाभिनन्दन की मूर्त्ति स्थापित की । विद्याधर विद्या से दुर्मद होकर दुर्विनीत न हो जाँय, अर्थात् विद्यासे मत वाले होकर उद्घण्ड और उच्छृङ्खल न हो जायँ इसलिये धरणेन्द्र ने ऐसी मर्यादा स्थापन की - 'जो दुर्मद वाले पुरुष - जिनेश्वर, जिन चैत्य, चरमशरीरी, और कायोत्सर्ग में रहने वाले किसी भी मुना पराभव या उल्लङ्घन करेंगे, उन्हें विद्याए ँ उसी तरह त्याग देंगी, जिस तरह आलसी पुरुषको लक्ष्मी त्याग देती है । जो विद्याधर किसी स्त्री के पति को मार डालेगा और स्त्री के बिना मरज़ी के उसके साथ भोग करेगा, उसको भी विद्यायें तत्काल छोड़ देंगी' । नागराजने ये मर्य्यादा ज़ोर से सुनाकर, वह यावत् चन्द्र रहें; यानी अब तक चन्द्रमारहे तब तक रहें, इस ग़रज़ से उन्हें रत्तभित्ति की प्रशस्ति में लिख दीं। इस के बाद नमि और विनमि दोनों विद्याधरों का राजत्व प्रसाद सहित स्थापन कर एवं और कई व्यवस्थाएँ करके नागपति अन्तर्द्धान होगये ।
नविनम की राज्य स्थिति ।
अपनी अपनी विद्याओंके नामसे विद्याधरों के सोलह निकाय या जातियाँ हुई । उन में गौरी विद्या से गौरेय हुए। मनु विद्या से मनु हुए, गान्धार विद्यासे गान्धार हुए; मानवी से मानव हुए; कौशिकी विद्यासे कौशिकी पूर्व हुए; भूमितुण्ड विद्यासे भूमि