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प्रथम पर्व
आदिनाथ-चरित्र बीचमें आये हुए रथनुपुर चक्रवाल नगरमें नामी ने निवास किया।
धरणेन्द्र की आज्ञासे पर्वत की उत्तर श्रेणी में विनमीने उसी तरह पचास नगर बसाये । अर्जुनी, वारुणी, वैसंहारिणी, कैलासवारुणी, विद्यु त्दीप, किलिकिल, चारुचूड़ामणि, चन्द्रभाभूषण, वन्शवत्, कुसुम चल, हन्सगर्भ, मेधक, शङ्कर, लक्ष्मीहर्म्य, चामर, विमल, असुमत्कृत, शिवमन्दिर, वसुमती, सर्वसिद्धस्तुत, सर्व शत्रुगय, केतुमालांक, इन्द्रकान्त, महानन्दन, अशोक, वीत शोक, विशोकक, सुखालोक, अलक तिलक, नभस्तिलक, मन्दिर, कुमुद कुन्द, गगनवल्लभ, युवतीतिलक, अवनितिलक, सगन्धर्व, मुक्तहार, अनिभिष, विष्टप अग्निज्वाला, गुरुज्वाला, श्रीनिकेतपुर जयश्री निवास, रत्नकुलिश, वशिष्टाश्रम, द्रविणाजय, सभद्रक, भद्राशयपुर, फैन शिखर, गोक्षीरवर शिखर, वैर्यक्षोभ शिखर, गिरिशिखर, धरणी, वारणी, सुदर्शन पुर, दुर्ग, दुर्द्धर, माहेन्द्र, विजय, सुगन्धिनी, सुरत, नागर पुर, और रत्नपुर-ये उन पचास नगर और नगरियों के नाम रक्खे। इन नगर और नगरियों के वीचों बीच में जो गगनवल्लभ नाम का नगर था, उसीमें धरणेन्द्र की आज्ञा से विनमि ने निवास किया। विद्याधरोंकी महत् ऋद्धि वाली वे दोनों श्रेणियाँ अपने ऊपर वाली व्यन्तर श्रेणी के प्रतिविम्ब-अक्स की तरह सुशोभित थीं ; यानी वे दोनों श्रेणी उनके ऊपरकी व्यन्तर श्रेणी के प्रतिविम्ब की जैसी मालूम होती थीं। उन्होंने और भी अनेक गाँव और खेड़े बसाये और स्थान की योग्यतानुसार कितने ही जनपद भी स्थापन किये। जिस देशसे लाकर जो लोग वहां