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"रत्र
आदिनाथ-चरित्र
प्रथम पर्व फूलोंके वियोग या जुदाई से दुखी हो उठी। भौंरोंके गूंजनेके शब्द से ऐसा जान पड़ता था, मानो वह अपने साथी फूलों की जुदाई से दुखी होकर रो रही हो। एक स्त्री मल्लिका के फूल तोड़कर जाना चाहती थी, इतनेमें उसका कपड़ा उसमें उलझ गया, उससे ऐसा मालूम होता था, यानीगोया मल्लिका उससे यह कहती हो कि तू दूसरी जगह न जा; उसे अपने पाससे जाने की मनाही करती थी। उसे अपने पाससे अलग करना न चाहती थी, उसका कपड़ा पकड़ कर उसे रोकती थी। कोई स्त्री चम्पे के फूल को तोड़ना चाहती थी, कि इतने में उसमें पड़ने वाले भौरे ने उसके होटपर काट लिया।मालूम होता था, अपना आश्रय भङ्ग होने के कारण, भौंरेको क्रोध चढ़ आया और इसीसे उसने आश्रय भङ्ग करने वालीके होठ को डस लिया। कोई स्त्री अपनी भुजा रूपी लता को ऊँची करके, अपनी भुजाके मूल भाग को देखनेवाले पुरुषोंके मनोंके साथ रहने वाले फूलोंको हरण करती थी। नये नये फूलोंके गुच्छे हाथोंमें होनेसे, फूल तोड़नेवाली रमणियाँ जङ्गमवल्ली जैसी सुन्दर मालूम होती थीं। वृक्षोंकी शाखा-शाखामें से स्त्रियाँ फूल तोड़ रही थीं ; इससे ऐसा मालूम होता था, गोया वृक्षोंमें स्त्री पी फल लगे हों। किसीने स्वयं अपने हाथों से मल्लिका की कलियाँ तोड़ कर, मोतियों के हार के समान, अपनी प्रिया के लिये पुष्पाभरण या फूलोंके जेवर बनाये थे। कोई कामदेव के तरकस की तरह, इन्द्रधनुष के से पचरङ्गे फूलोंकी माला अपने हाथोंसे गूंथकर अपनी प्राणप्यारी को देता