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प्रथम पर्व
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आदिनाथ चरित्र उन्होंने प्रभु से जाकर प्रार्थना की। प्रभुने उनकी बात सुनकर कहा--"उन अनाजोंको मसलकर छिलके रहित करो, तब खाओ।" वे लोग ठीक प्रभुके उपदेशानुसार काम करने लगे, किन्तु सख्ती
और कड़ाईके कारण उन्हें वह अनाज इस तरह भी न पचे ; इसलिये उन्होंने फिर प्रभुसे प्रार्थना की। इस बार प्रभुने कहा-"उन अनाजों को हाथोंसे रगड़ कर, जलमें भिगोकर और फिर दोनों में रखकर खाओ।" उन्होंने ठीक इसी तरह किया, तोभी उन्हें अजीर्ण की वेदना या बदहज़मी की शिकायत रहने लगी; तव उन्हों ने फिर प्रार्थना की। जगत्पति ने कहा-“पहले कही हुई विधि करके, उस अनाज को मुट्ठी या बग़लमें कुछ देर तक रख कर खाओ । इस तरह तुमको सुख होगा।" लोगों को इस तरह अन्न खाने से भी अजीर्ण होने लगा, तब लोग शिथिल होगये। इसी बीचमें वृक्षोंकी शाखायें आपसमें रगड़ने लगी। उस रगड़न से आग उत्पन्न हुई और घास फूस एवं लकड़ी या काठ प्रभृति को जलाने लगी। प्रकाशमान रत्न के भ्रमसे-चमकते हुए रत्नके धोखेसे, उन्होंने उसे पकड़ने के लिये दौड़ कर हाथ बढ़ाये; परन्तु वे उल्टे जलने लगे। तब आगसे जलकर वे लोग फिर प्रभुके पास जाकर कहने लगे:-"प्रभो ! जङ्गलमें कोई अद्भुत भूत पैदाहुआ है।" स्वामीने कहा-"चिकने और रूखे कालके दोषसे आगउत्पन्न हुई है, क्योंकि एकान्त रूखे समय में आग उत्पन्न नहीं होती। तुम उसके पास जाकर, उसके नजदीक की घास फूस आदिको हटादो और फिर उसे ग्रहण करो। इसके बाद पहली कही हुई विधिसे