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प्रथम पव
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आदिनाथ-चरित्र २२८ श्वर अपनी प्रजाका अपने पुत्रके समान पालन करने लगे। उन्होंने दुष्टोंको शिक्षा देने और सजनोंका पालन करने की चेष्टा करने वाले, अपने अङ्ग के जैसे मन्त्री मन्त्रणाकार्य के लिये चुने । महाराजा ऋषभ देवने चोरी आदि से प्रजाकी रक्षा करने में प्रवीण, इन्द्रके लोकपालों-जैसे आरक्षक देव चारों ओर नियत किये। राजहस्ति जैसे प्रभुने राज्यकी स्थिति के लिए, शरीर में उत्तमाङ्ग शिरकी तरह, सेनाके उत्कृष्ट अङ्ग रूप हाथी ग्रहण किये। उन्होंने सूर्य के घोड़ों की स्पर्धा सी करने वाले और ऊँची-ऊँची गर्दनों वाले घोड़े रखे। उन्होंने सुन्दर लकड़ियों से ऐसे रथ बनवाये, जो पृथ्वी के विमान जैसे मालूम होते थे। जिनके सत्व बल की परीक्षा कर ली गई थी, ऐसे सैनिकों की पैदल सेना प्रभुने उसी तरह रक्खी, जिस तरह कि चक्रवर्ती राजा रक्खा करते हैं । नवीन साम्राज्य रूपी महलके स्तम्भ या खम्भ-जैसे महा बलवान सेनापति प्रभु ने एकत्र किये और गाय, बैल, ऊँट, भैंस-भैंसे एवं खच्चर प्रभृति पशु, उनके उपयोगको जानने वाले प्रभुने ग्रहण किये।
प्रभु द्वारा शिल्पोत्पत्ति। अब, उस समय पुत्र-विहीन वंश की तरह कल्प-वृक्षों के नष्ट हो जाने से लोग कन्द मूल और फल प्रभृति पर गुजारा करते थे। उस समय शाल, गेहूँ, चने और मूंग प्रभृति औषधियाँ घास की तरह, विना बोये अपने-आप ही पैदा होने लगीं। लेकिन वे लोग उन्हें कच्ची की कच्ची ही-विना पकाये खाते थे; उनको वे न पची तब