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प्रथम पर्व
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आदिनाथ-चरित्र
तरह संगीत या तमाशे को ख़तम करके रंगाचार्य अपने स्थानको चला जाता है, उसी तरह विवाह उत्सव समाप्त करके इन्द्र अपने स्थानको : चला गया । प्रभुकी दिखलाई हुई विवाह की रीति रस्म उस समय से दुनिया में चल गई । क्योंकि बड़े आदमियों की स्थिति दूसरों के लिये ही होती है। बड़े लोग जिस चाल पर चलते हैं, दुनिया उसी चाल पर चलती है । महापुरुष जो मर्यादा बाँध देते हैं, संसार उसी मर्यादा के भीतर रहता है ।
अब अनासक्त प्रभु दोनों पत्नियों के साथ भोग भोगने लगे; यानी प्रभु आसक्ति रहित होकर अपनी दोनों पत्नियों के साथ भोग-विलास करने लगे । क्योंकि बिना भोग भोगे पहलेके
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- सतावेदनीय कर्मों का क्षय न होता था । विवाह के वाद प्रभुने उन पक्षियोंके साथ कुछ कम छै लाख पूर्व तक भोग-विलास किया। उस समय बाहु और पीठ के जीव सर्वार्थसिद्धि विमान से च्युत होकर, सुमंगला की कोख में युग्म रूप से उत्पन्न हुए और सुषाहु तथा महा पीठ के जीव भी उसी सव्र्व्वार्थसिद्धि विमान से च्यव कर, उसी तरह सुनन्दा की कोख से उत्पन्न हुए । सुमंगलाने गर्भ के माहात्म्यको सूचित करने वाले - चौदह महास्वप्न देखे । देवीने उन सुपनोंका सारा हाल प्रभु से कहा; तब प्रभुने कहा - " तुम्हारे चक्रवर्ती पुत्र होगा ।" समय आने पर पूरब दिशा जिस तरह सूरज और सन्ध्या को जन्म देती हैं; उली तरह सुमंगला ने अपनी कान्ति से दिशाओं को