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प्रथम पवे
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आदिनाथ चरित्र
'करने वाले पदक पहनायें । भुजाओं के ऊपर, कामदेव के धनुष में बँधे हुए वीरपटके जैसे शोभायमान, रत्नजडित बाजूबन्द बाँधे और उनके स्तन रुपी किनारों पर, उस जगह चढ़ती-उतरती नदीका भ्रम करने वाले हार पहनाये । उनके हाथों में मोतियोंके कडुन पहनाये, जो जल. लता के नीचे जलसे शोभित क्यारियोंकी तरह सुन्दर मालूम देते थे । उनकी कमरों में मणिमय कर्धनियाँ पहनाई', जिनमें लगी हुई घूँघरोंकी पंक्तियाँ ॐकार करती थीं और वह कटि-मेखला या कर्धनी रतिपतिकी मङ्गल - पाठिका की तरह शोभा देती थीं । उनके पाँवोंमें जो पायज़ेबें पहनाई गई थीं; उनके घूँघरू छमाछम करते हुए ऐसे जान पड़ते थे, मानो उनके गुण कीर्तन कर रहे हों ।
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पाणिग्रहण उत्सव |
इस तरह सजाई हुई दोनों बालिकायें देवियोंने बुलाकर मातृभुवनमें सोनेके आसन पर बैठाई । उस समय इन्द्रने आकर वृषभ लाञ्छन वाले प्रभुको विवाहकेलिये तैयार होने की प्रार्थनाकी । " लोगों को व्यवहार स्थिति बतानी उचित है और मुझे योग्य कर्म भोगने ही पडेंगे,” ऐसा विचार करके उन्होंने इन्द्रकी प्रार्थना स्वीकार कर ली । तब विधिको जानने वाले इन्द्रने प्रभुको स्नान कराया और चन्दन, केशर, कस्तूरी प्रभृति सुगन्धित पदार्थोंको लगाकर यथोचित आभूषण पहनाये । इसके बाद प्रभु दिव्य वाहन पर बैठकर विवाह मण्डपकी ओर चले । इन्द्र छड़ीबर्दारकी