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आदिनाथ-चरित्र
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प्रथम पर्व
रेशमी कपड़े पहनाकर, और उन्हें बिठा कर उनके बालोंसे मोतियों की वर्षाका भ्रम करने वाला जल नीचें टपकाया । धूप रूपी लतासे सुशोभित उनके ज़रा-ज़रा गीले बाल दिव्य धूपसे धूपित किये सोने पर जिस तरह गेरूका लेप करते हैं; उसी तरह उन स्त्रीरत्नोंके अङ्गोंको सुन्दर अङ्गरागसे रञ्जित किया। उनकी गर्दनों, भुजाओंके अगले भागों, स्तनों और गालों पर मानों कामदेवकी प्रशस्ति हो, इस तरह पत्र-वल्लरी की रचना की । माँनो रतिदेवके उतरनेका नवीन मंडल हो ऐसा चन्दनका सुन्दर तिलक उनके ललाटों पर किया । उनकी आँखों में नील कमलके बनमें आने वाले भौरके जैसा काजल आँजा । मानो कामदेवने अपने शस्त्र रखने के लिये शस्त्रागार बनाया हो, इस तरह खिले हुए फूलों की मालाओं से उन्होंने उनके सिर किये । माथा- चोटी और माँ पट्टी करनेके बाद, चन्द्रमाकी किरणोंका तिरस्कार करने वाले लम्बे-लम्बे पल्लेवाले कपड़े उन्हें पहनाये । पूरब और पश्चिम दिशाओंके मस्तकों पर जिस तरह सूरज और चाँद रहते हैं, उसी तरह उनके मस्तकों पर विचित्र रत्नोंसे देदीप्यमान दो मुकुट धारण कराये । उनके दोनों कानोंमें, अपनी शोभा से रत्नोंसे अङ्कुरित हुई पृथ्वीके सारे गर्वको खर्ध करने वाले, मणिमय कर्णफूल और झुमके पहनाये । कर्णलताके ऊपर, नवीन फूलों की शोभाकी विडम्बना करने वाले मोतियोंके दिव्य कुण्डल पहनाये | कर्णमें विचित्र माणिककी कान्तिले आकाशको प्रकाशमान करने वाले और संक्षेप किये हुए इन्द्र धनुषकी शोभाका निरादर