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आदिनाथ चरित्र
प्रथम पर्व मनवाले इन्द्रने, पहले की तरह ही, अपने पाँच रूप बनाये। उनमें से एक अप्रमादी रूप से, उसने ईशान इन्द्र की गोदी से जगत्पति को, रहस्य की तरह, अपने हृदयपर ले लिया। खामी की सेवा को जाननेवाले इन्द्र के दूसरे रूप, इसी कामपर मुकर्रर किये गये हों, इस तरह स्वामी-सम्बन्धी अपने-अपने काम पहलेकी तरह ही करने लगे। इसके बाद, अपने देवताओंसे घिरा हुआ सुरपति, आकाश-मार्ग से, मरुदेवा से अलंकृत किये हुए मन्दिर में आया। वहाँपर रखे हुए तीर्थङ्कर के प्रतिबिम्ब का उपसंहार करके उसने उसी जगहपर माता की बग़ल में प्रभु को रख दिया। फिर सूर्य जिस तरह पद्मिनी की नींद को दूर करता है , उसी तरह शक्रने माता मरुदेवाकी अवसर्पिणी निद्रा भंगकी
और नदी-कूलपर रहनेवाली सुन्दर हंस-माला के विलासको धारण करनेवाले साफ-सफेद रेशमी वस्त्रप्रभुके सिरहाने रक्खे । बालावस्था में भी पैदा हुए भामण्डल के विकल्प को करनेवाले रत्नमय दो कुण्डल भी प्रभु के सिरहाने रक्खे । इसी तरह सोनेसे बने हुए विचित्र रत्नहार और अहारों से व्याप्त एवं सोने के सूर्य के समान प्रकाशमान श्रीदामदण्ड (गिल्लीदण्डा )खिलौना प्रभुके दृष्टिविनोद के लिये, गगन में दिवाकर अथवा आकाश में सूर्य की तरह, घरके अन्दर की छत की चाँदनी में लटका दिया। दूसरे शब्दों में यों भी कह सकते हैं प्रभु का दिल खुश होने के लिए, एक सोने और जवाहिरात से बना हुआ चित्ताकर्षक मनोहर खिलौना, प्रभु की नज़र पड़ती रहे, इस तरह घरके अन्दर की