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प्रथम पर्व
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आदिनाथ-चरित्र
करता हूँ । हे प्रभु! यह मुहूर्त्त भी बन्दना करने योग्य है । क्योंकि इस मुहूर्त में धर्म को जन्म देने वाले - अपुनर्जन्मा-फिर जन्म ग्रहण न करने वाले - विश्व-जन्तुओंको जन्म के दुःखसे छुड़ाने वालेआपका जन्म हुआ है। हे नाथ ! इस समय आपके जन्माभिषेक के जलकेपूट से लावित हुई है और बिना यत्न किये जिसका मल दूर हुआ है, ऐसी यह रत्न भा पृथ्वी सत्य नाम वाली हुई है । हे प्रभु! जो आपका रात- -दिन दर्शन करेंगे, उनका जन्म धन्य है ! हम तो अवसर आने पर ही आपके दर्शन करने वाले हैं । हे स्वामि ! भरतक्षेत्र के प्राणियों का मोक्षमार्ग ढक गया है। उसे आप नवीन पान्थ या पथिक होकर पुनः प्रकट कीजिये। हे प्रभु! आप की अमृत तुल्य धर्मदेशना की तो क्या बात है, आपका दर्शनमात्र ही प्राणियों का कल्याण करनेवाला है । हे भवतारक ! आपकी उपमा के पात्र कोई नहीं, जिससे आपकी उपमा दी जाय ऐसा कोई भी नहीं, इसलिये मैं तो आपके तुल्य आप ही हो ऐसा कहता
हूँ, तो अब अधिक स्तुति किस तरह की जाय ? हे नाथ ! आपके
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सत्य अर्थको बताने वाले गुणों को भी मैं कहने में असमर्थ हूँ, क्योंकि स्वयंभूरमण समुद्र के जल को कौन माप सकता है ?"
इन्द्र द्वारा आदिनाथ भगवान् के लालन
पालन और मन बहलाव के उपाय ।
प्रभुका जन्मोत्सव करके उनको उनके स्थान में छोड़न इस प्रकार जगदीश की स्तुति करके, प्रमोद से सुगन्धित
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