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प्रथम पर्व
आदिनाथ-चरित्र हाथी आपके हिरन को नुकसान पहुँचायेगा। हे सर्पवाहन ! यहाँ से दूर रहो, देखो यह मेरा वाहन गरुड़ है, यह आपके सर्पको तकलीफ देगा। अरे भाई ! तू मेरी राह रोकने को आड़े क्यों आता है और अपने विमान से मेरे विमान को क्यों लड़ाता है ? दूसरा कहता-अरे मैं पीछे रह गया हूँ, और इन्द्र महाराज जल्दी-जल्दी चले जाते हैं, इसलिये परस्पर संघर्षण होने या टक्कर होनेसे नाराज़ मत होओ; क्योंकि पर्वदिनों में भिचाभिची या अडाअड़ी होती ही है ; यानी पर्बके दिन अकसर भीड़. भाड़ होती ही है। इस तरह उत्सुकता से इन्द्र के पीछे-पीछे जानेवाले सौधर्म देवलोक के देवों का भारी कोलाहल या गुलशोर होने लगा। उस समय दीर्घध्वजपट वाला वह पालक विमान, समुद्र के मध्य शिखर से उतरती हुई नाव जिस तरह शोभती है उसी तरह, आकाश से उतरता हुआ शोभने लगा। जिस तरह हाथी वृक्षों के बीच से चलता हुआ वृक्षों को नवाता है, उसी तरह मेघ-मण्डल से पंकिल हुए-नम्र हुए स्वर्ग को झुकाता हो इस तरह, नक्षत्रचक्र के बीच में, वह विमान आकाश में चलता-चलता, वायु के वेग से, अनेक द्वीप-समूह को लाँघता हुआ, नन्दीश्वर द्वीप में आ उपस्थित हुआ। जिस तरह विद्वान् पुरुष ग्रन्थ को संक्षिप्त करते हैं; उसी तरह उस द्वीप के दक्खन पूर्व के मध्यभाग में, रतिकर पर्वत के ऊपर, इन्द्रने उस विमान को संक्षिप्त किया। वहाँ से आगे चलकर, कितनेही द्वीप और समुद्रों को लांघकर, उस विमान