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________________ आदिनाथ चरित्र १६० प्रथम पर्व हज़ार खम्भोंवाला सूतिका गृह-ज़च्चाघर बनाया। इसके बाद संवर्त नामक वायु से सूतिकागार या जच्चा घर के चारों तरफ कोस भर तक के कंकर पत्थर और काँटे दूर कर दिये । संवर्त वायु का संहरण करके और भगवान् को प्रणाम करके, वे गीत गाती हुई उनके पास बैठ गई । इस तरह आसन के काँपने से प्रभु का जन्म जानकर, मेघं - करा, मेघवती, सुमेधा, मेघमालिनी, तोयधारा, विचित्रा, वारिषेणा और वलादिका नाम की, मेरु पर्वतपर रहनेवाली, उर्ध्वलोक-वासिनी आठ दिक्कुमारियाँ वहाँ आई । उन्होंने जिनेश्वर और जिनेश्वर की माता को नमस्कार -पूर्वक स्तुतिकर, भादों के महीने की तरह, तत्काल, आकाश में मेघ उत्पन्न किये । उन मेघों से सुगन्धित जल बरसाकर, सुतिकागार के चारों तरफ चार कोस तक, चन्द्रिका जिस तरह अँधेरे का नाश कर देती है उसी तरह, धूल का नाश कर दिया। घुटनोंतक, पाँच रङ्ग के फूलों की वृष्टि से, मानो तरह-तरह के चित्रोंवाली ही हो इस तरह, पृथ्वी को शाभामन्ती बना दी। पीछे तीर्थङ्कर के निर्मल गुण गान करती हुई एवं हर्षोत्कर्ष से शोभा पाती हुई वे अपने योग्य स्थानपर बैठ गई । पूर्व रुचकाद्रि पर्वत पर रहनेवाली नन्दा, नन्दोत्तरा, आनन्दा नन्दिवर्द्धना, विजया, वैजयन्ती, और अपराजिता नाम की आठ दिशा - कुमारियाँ भी मानों मन के साथ स्पर्द्धा करनेवाले हों ऐसे
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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