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प्रथम पर्व
आदिनाथ-चरित्र आदिनाथचान
खुशी के मारे गरज रहा है। उस समय, क्षणमात्र के लिए,नरकबासियों को भी ऐसा अपूर्व सुख हुआ, जैसा पहले कभी नहीं हुआ था। फिर तिर्यञ्च, मनुष्य और देवताओं को सुख हुआ हो, इसमें तो कहना ही क्या ? ज़मीनपर मन्द-मन्द चलता हुआ पवन, नौकरों की तरह, ज़मीन की धूल को साफ करने लगा। बादल चेल क्षेप और सुगन्धित जल की वृष्टि करने लगे; इससे अन्द्र बीज बोये हुए की तरह पृथ्वी उच्छवास को प्राप्त होने लगी।
दिक कुमारियोंका जन्मोत्सव मनाना।
इस समय अपने आसन चलायमान-कम्पित होने से, भोङ्गकरा, भोगवती, सुभोगा,भोगमालिनी, तोयधारा, विचित्रा, पुष्प माला और अनिन्दिता-नाम की आठ दिक्-कुमारियाँ, तत्काल, अधःलोक से, भगवान् के सूतिका-गृह या सोहर में आई। आदि तीर्थङ्कर और तीर्थङ्कर की माता की तीन बार प्रदक्षिणाकर, वे इस प्रकार से कहने लगी:-'हे जगत्माता! हे जगत्-दीपक को जननेवाली देवि !हम आप को नमस्कार करती हैं । हम अध:लोक में रहनेवाली आठ दिक्कुमारियाँ हैं। हम, अवधिज्ञान से, पवित्र तीर्थङ्कर के जन्म की बात जानकर, उनके प्रभाव से, उनकी महिमा करने के लिए यहाँ आई हैं; इसलिये आप हम से डरियेगा नहीं ।' यह कहकर, ईशान भाग में रहनेवालियोंने, प्रसन्न होकर, पूरब दिशा की तरफ मुंह और