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प्रथम पर्व
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आदिनाथ चरित्र
कान्ति-समूहसे दिशाओं को प्रकाशित किये हुए - चन्द्रमण्डल देखा । सातवें स्वममें उन्होंने — रातमेंभी तत्काल दिनका भ्रम करने वाला, सम्पूर्ण अन्धकारको नाश करने वाला और फैलती हुई किरणों वाला - सूर्य्य देखा | आठवें स्वप्नमें उन्होंने — चपल कानोंसे शोभायमान, हाथी जैसी घूँघुरियोंकी लड़ीके भारवाली चञ्चल पताका से सुशोभित - महाध्वजा देखी । नवें स्वप्न में उन्होंने — खिले हुए कमलोंसे अचित समुद्रमथनसे निकले हुए सुधा कुम्भ याअमृत-घटके समान - जलसे भरा हुआ सोनेका घड़ा देखा। दसवें स्वप्न में उन्होंने आदि अर्हन्तकी स्तुतिके लिए अनेक मुख वाला हुआ हो ऐसा, भौंरोंके गुञ्जार वाला और अनेक कमलोंसे शोभितपद्माकर या पद्मसरोवर देखा । ग्यारहवें स्वप्न में उन्होंने — पृथ्वी पर फैला हुआ, शरद ऋतुके मेधकी लीलाको चुराने वाला और और उत्ताल तरङ्ग - समूहसे चित्तको आनन्दित करने वालाक्षीरनिधिया क्षीरसागर देखा । बारहवें स्वप्न में उन्होंने एक प्रभूत कान्तिमान् विमान देखा । ऐसा जान पड़ता था, मानो भगवान्के देवत्वपनेमें उसमें रहने के कारण वह पूर्वस्नेहके कारण वहाँ आया हो । तेरहवें स्वप्न में उन्होंने किसी कारणसे एकत्र हुए तारों के समूह और एकत्र हुई निर्मल कान्तिके समूह - - जैसा रत्नपुञ्ज आकाशमें देखा । चौदहवें स्वप्न में उन्होंने, त्रिलोकीके तेजस्वी पदाके पिण्डीभूत हुए तेजके समान प्रकाशमान, निर्धूम अग्निको मुखमें घुसते देखा । रात्रिके विराम- समय, स्वप्नके अन्तमें, प्रफुल्लमुखी स्वामिनी मरूदेवा कमलिनीको तरह जाग उठीं। मानो