________________
आदिनाथ चरित्र
१५२
प्रथम पर्न
में, चन्द्रका योग होते ही, वज्रनाभ का जीव, तेतीस सागरोपम आयु भोगकर, सर्वार्थ सिद्ध विमानसे च्यवकर, जिस तरह मानसरोवरसे गङ्गातटमें हंस उतरता हैं उसी तरह, नाभि कुलकर की स्त्री-मरुदेवा - के पेटमें अवतीर्ण हुआ। जिस समय प्रभु गर्भ में आये उस समय, प्राणिमात्रके दुःखका विच्छेद होने से, त्रिलोकी में सुख हुआ और सर्वत्र बड़ा प्रकाश फैला। जिस रातको देवलोक से च्यवकर प्रभु माता के गर्भ में आये, उस रातको निवास - भवनमें सोई हुई मरुदेवाने चौदह महास्वप्न देखे | उन्होंने उन स्वप्नों में से पहले स्वप्नमें एक उज्ज्वल वृषभ या बल देखा, जिसके कन्धे पुष्ट थे, पूँछ लम्बी और सरल थी और जो सोनेके घुंघुरुओं की माला पहने हुए बिजली समेत शरदऋतु के मेघके समान था । दूसरे स्वप्न में उन्होंनेसफेद रङ्गका, क्रमोन्नत, निरन्तर भरते हुए मदकी नदीसे रमणीय, चलते हुए कैलाश जैसा - चार दाँत वाला हाथी देखा। तीसरे स्वप्न में उन्होंने पीले नेत्र, दीर्घ जिह्वा और चपल अयालों वाला, शूरवीरोंकी जयपाताकाकी तरह दुम हिलाता हुआ - केशरीसिंह देखा । चौथे स्वप्नमें उन्होंने — कमलनयनी पद्म-निवासिनी अगल-बगल अपनी सूँड़ोंमें पूर्ण कुम्भ उठाये हुए दिग्गजोंसे शोभायमान - लक्ष्मी देखी । पाँचवें स्वप्नमें उन्होंने -देववृक्षोंके फूलोंसे गुथी हुई, सीधी और धनुर्धारियोंके चढ़ाये हुए धनुषके समान लम्बी- फूलोंकी माला देखी। छठे स्वप्न में उन्होंनेअपने मुखके प्रतिबिम्बके समान, आनन्दका कारण रूप, अपने