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आदिनाथ-चरित्र १४८
प्रथम पर्व अनुक्रम से बढ़ने लगे । साढ़े सात सौ धनुष प्रमाण उचे शरीर वाले और सदा साथ-साथ घूमनेवाले वे दोनों तोरण-स्तम्भ के विलास को धारण करते थे। मृत्यु हो जानेपर, चक्षुष्मान
सुवर्णकुमारमें और चन्द्रकान्ता नागकुमारमें उत्पन्न हुई। मातापिता का देहान्त होनेपर, यशस्वी अपने पिता की तरह, जिस तरह गोपाल गायों का पालन करता है उसी तरह, सब युगलियाँ का लीला से पालन करने लगा। परन्तु उसके ज़माने में,मदमाता हाथी जिस तरह अङ्कुश को नहीं मानता है; उसका उल्लङ्घन करता है, उसी तरह युगलिये भी अनुक्रमसे 'हाकार दण्ड' का उल्लङ्घन करने लगे। तब यशस्वीने उन लोगोंको 'माकार दण्ड' से शिक्षा देना शुरू किया। क्योंकि जब एक दवा से रोग आराम न हो, तब दूसरी दवाकी व्यवस्था करनी ही चाहिये। वह महामति यशस्वी हलका या थोड़ा अपराध करनोवाले को दण्ड देनेमें हाकार नीतिसे काम लेने लगा। मध्यम अपराध करनेवाले को दण्डित करने में दूसरी 'माकार नीति' का प्रयोग करने लगा और भारी अपराध करनेवालोंपर दोनों ही नीतियोंका इस्तेमाल करने लगा। यशस्वी और सुरूपा की जब थोड़ी सी उम्र बाकी रह गई ; तब जिस तरह बुद्धि और विनय साथसाथ उत्पन्न होते हैं ; उसी तरह उनसे एक जोड़ली सन्तान पैदा हुई। पुत्र चन्द्रमा के समान उज्ज्वल था, इसलिये माँबापने उसका नाम अभिचन्द्र रक्खा और पुत्री प्रियङ्गलता का प्रतिरूप थी, इसलिये उस का नाम प्रतिरूपा रखा। वे अपने