________________
प्रथम पर्व
१४७
आदिनाथ-चरित्र
किया गया तिरस्कार भला नहीं।' इस तरह वे युगलिये मानने लगे । उस विमलवाहन की उम्र के जब छः महीने बाकी रह गये, तब उसकी चन्द्रयशा नाम की स्त्रीसे एक जोड़ली सन्तान पैदा हुई । वे दोनों जोड़ले असंख्य पूर्वके आयुष्यवाले, प्रथम संस्थान और प्रथम संहननवाले, श्यामवर्ण और आठ सौ धनुष प्रमाण ऊँचे शरीरवाले थे। माता-पिताने उनके चक्षुष्मान और चन्द्रकान्ता नाम रक्खे । साथ-साथ पैदा हुए लता और वृक्षकी तरह वे साथ-साथ बढ़ने लगे । छः मास तक अपने दोनों बच्चों का पालन-पोषण करके, जरा और रोग बिना मरकर, विमलवाहन सुवर्णकुमार देवलोक में और उस की स्त्री चन्द्रशा नागकुमार देवलोकमें उत्पन्न हुई; क्योंकि चन्द्रमाके अस्त होनेपर चन्द्रिका नहीं रहती । वह हाथी भी अपनी उम्र पूरी कर के, नागकुमार निकाय में, देवरूपमें पैदा हुआ; क्योंकि कालका
माहात्म्यही ऐसा है ।
दूसरा तीसरा कुलकर— राजा ।
इसके बाद चक्षुष्मान भी, अपने पिता विमलवाहन की तरह, हाकार नीति से ही युगलियों को मर्य्यादाके अन्दर रखने लगा । अन्त समय निकट होनेपर, चक्षुष्मान और चन्द्रकान्ता के यशस्वी और सुरूपा नामकी युगधर्मि जोड़ली सन्तान उत्पन्न हुई। वे भी वैसेही संहनन और वैसेही संस्थानवाले तथा किसी क़दर कम उम्र वाले हुए वय और बुद्धि की तरह, वे दोनों