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प्रथम पर्व
११६ आदिनाथ-चरित्र सुगन्धित था। अमृत-कुण्ड में स्नान करने से रोगी जिस तरह आरोग्य लाभ करते हैं; उसी तरह उनके शरीर के छूने मात्र से रोगी लोग निरोग होते थे। जिस तरह सूर्यका तेज अन्धकार का नाश करता है ; उसी तरह बरसाती और नदियों का बहने वाला जल उनके संगसे सब रोगों को नाश करता था। गन्धहस्ती के मद् की गन्धसे जिस तरह और हाथी भाग जाते हैं; उसी तरह उनके शरीर से लगकर आये हुए वायु से विष प्रभृति के दोष दूर भाग जाते थे। यदि, किसी तरह, कोई विष-मिला अन्नादिक पदार्थ उनके मुख या पात्र में आ जाता था, तो अमृतके समान विषहीन हो जाता था। ज़हर उतारने के मन्वाक्षरों की तरह, उनके वचनों को याद करने से विष-व्याधि से पीड़ित मनुष्यों की पीड़ा नाश हो जाती थी। जिस तरह सीपी का जल मोती हो जाता है ; उसी तरह उनके नाखुन, बाल, दाँतों और उनके शरीर से पैदा हुए मैल प्रभृति पदार्थ औषधि रूप में परिणत हो जाते थे।
फिर सूईके नाके में भी डोरे की तरह घुस जाने की सामर्थ्य जिससे हो जाती है, वह अणुत्व शक्ति उन को प्राप्त होगई ; अर्थात् इच्छा करने मात्र से वह अपना छोटे-से-छोटा रूप बना सकते थे। उन को अपने शरीर को बड़ा करने की वह महत्वशक्ति प्राप्त होगई, जिससे वह अपने शरीर को इतना बड़ा कर सकते थे कि जिस से मेरु पर्वत उन के घुटनेतक आवे। उन्हें वह लघुत्व शक्ति प्राप्त होगई, जिस से वह अपने शरीर को हवासे