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आदिनाथ-चरित्र . ११०
प्रथम पर्व का पराग ग्रहण करता है, पर उन को कष्ट नहीं देता; उसी तरह वे भी गृहस्थों के घरसे आहार ग्रहण करते थे, पर उनको कष्ट हो ऐसा काम नहीं करते थे। सुभट या योद्धा जिस तरह प्रहार को सह सकते हैं, उसी तरह वे धैर्य को अवलम्बन कर, भूख, प्यास और धूप प्रभृति के परिषह या कष्ट को सहन करते थे। मोहराज सेनापतियों के जैसे चारों कषायों को उन्हों ने क्षमा प्रभृति अस्त्रों से जीत लिया था। पीछे उन्होंने द्रव्य और भाव से संलेखना करके, कर्मरूपी पर्वत को नाश करने में वज्रवत् अनशन व्रत ग्रहण किया। शेषमें; समाधि को भजनेवाले उन लोगोंने पञ्च परमेष्ठी का स्मरण करते हुए अपने अपने शरीर त्याग दिये । महात्मा लोग मोह-रहित ही होते हैं; अर्थात् महापुरुषों में मोह नहीं होता, संसार के उत्तम से उत्तम पदार्थ तो क्या चीज हैं उन्हें अपने दुर्लभ शरीर से भी मोह नहीं होता।
Sage दसवाँ भव -
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वे छहों महात्मा वहाँले देहत्याग कर, अच्युत नाम के बारहवें देवलोक में, इन्द्रके सामानिक देव हुए। इस प्रकार के तपका साधारण फल नहीं होता। बाईस सागरोपम आयुष्य पूरी करके