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नव वासुदेव, नवप्रति वासुदेव नव बलदेव आदि ६३ शलाका पुरुषोके चरित्र दिये है । इसीका पहिला पर्व श्री आदिनाथ चरित्र आप महानुभावोंके सामन हिन्दी भापनुवाद रखा जाता हैं । इस ग्रन्थ में आचार्यश्रीने काव्यकी मधुरता, सुन्दरताका पुरा ख्याल दिया हैं । और साहित्य के दोषसे पुरा बचाव किया है ।
२ परिशिष्टपर्व - ( काव्य ग्रन्थ )
इसमे महावीरस्वामीकी पटपरंपरानुगत जम्बूस्वामीसे लेकर दशपूर्वर श्रीमान् वजुस्वामी तक महान् स्थविरोंके चरित्रोंका उल्लेख दिया है । इसका दुसरा नाम स्थविरावली भी है ।
३ द्वाश्रयमहाकाव्य - ( संस्कृत )
यह ग्रन्थ काव्यका होनेपर भी इसमें विशेषता यह है कि एक तरफसे आचार्यश्रीका बनाया हुआ सिद्धम व्याकरणके सूत्रोसे सिद्धरुपाख्यानको बताने में आये हैं । और दुसरी तरफसें उसी कोमें सुंदरता, मधुरता और अलंकारोसे परिपूर्ण चौलुक्य वंशके इतिहासका वर्णन दिया है |
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द्वाश्रयमहाकाव्य ( प्राकृत ) यह काव्यभी आपकाही बनाया हुआ हैं । इसमें कुमारपाल राजाका वृत्तान्त दिया हैं । इस काव्यके आठ सर्ग है । मागधी, शौरसेनी, चुलिका, पैशाची, पैशाचिकी, अपभ्रंश ये छहो भाषा के प्रयोग भी इसमें सिद्ध है मव्याकरणके सूत्रोको प्रयोगोसे सिद्ध किये हैं ।
C सिद्धहेमचन्द्र व्याकरण
इसके आठ अध्याय है । पहिलेके सात अध्याय में संस्कृत व्याकरणका नियम है | और आठवें अध्याय में मागधी, शौरसेनी, चुलिका, पैशाची, पैशाचिकी, और अपभ्रंश में भाषाओंके समस्त स्वरुप बताया है ।
यह व्याकरण प्रख्यात गुजरातके नरपति सिद्धराज जयसिंहकी विज्ञप्तीको स्विकारकर अपना और राजाके नामसे सिद्ध हैमचन्द्र व्याकरणकी रचना की है ।