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॥ अहम् ॥
भूमिका.
प्रिय महानुभावो!
इस ग्रन्थके विषयमें कुछभी लिखनेकी आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि प्राग्वचनमें ग्रन्थ सम्बन्धी उल्लेख पं. काशीनाथजी जैन ( मेनेजर-नरसिंह प्रेस कलकत्ता) ने किया है, तदपि मेरे प्रति बहुत कुछ लोगोका आग्रह होनेसे में ग्रन्थकर्ताके विषयमें कुछ लिखना उचित समझता हूँ।
प्रस्तुत इस ग्रन्थके कर्ता मान्यवर कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्य महाराज है । आपका जन्म ग्यारहवी शताब्दिमें हुआ है । आपके पिताका नाम चंगदेव और माताका नाम पाहिनी थे। आपने लघुवयस्कमेंही संसारका त्याग कर श्रीमान् देवचन्द्रसूरीश्वरजीके पास दीक्षा ग्रहण-धारण की थी। और आपने थोडेही समयमें साधु धर्मके योग्य धार्मिक क्रियायें शिखली। आप निरन्तर चारित्र बलसे आगे बढ ते थे, वैसे ही आपका ज्ञानबल भी विशेष लोगोके चितको चमत्कार कराने वाला था। तत् पश्चात् आपकी बुद्धिकी चातुर्यता और कुशलताको देख आपको गुरुमहाराजने एवं संघसमस्तने सोलह वर्षकी लघु उम्रमेही आचार्य पदसे विभूषित किये। ओर विद्वद् मण्डलनेभी आपको बलिकाल सर्वज्ञकी उपाधिसे अलंकृत किये । आपकी बुद्धि जैसी पठनपाठनमें थी वैसेही आपकी ग्रन्थकर्तृत्व शक्तिभी थी। और आपने न्याय व्याकरण काव्य अलंकार ज्योतिष वैद्य स्तुति आदि अनेक चमत्कारिक जैन साहित्य लिखा है। उसमेसे आप महानुभावोंको जाननेके लिये कुछ ग्रन्थोंका उल्लेख देना उचित समझता हूं। .. १ यह त्रिषष्टी शलाका पुरुष चरित्र परमार्हत जीवदया प्रतिपालक कुमारपाल राजाकी नम्र विज्ञप्तिसे लिखा हैं । जिसमे २४ तीर्थकर १२ चक्रवर्ती