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आदिनाथ-चरित्र
प्रथम पव हो गई हैं।” उस के ऐसे दुःख से ईशान इन्द्र का वह सामानिक देव भी दुखी हो गया। फिर अवधि-ज्ञान का उपयोग कर उसने कहा-“हे महानुभाव ! आप खेद न करें। मैंने, ज्ञानबल से, आप की प्रिया कहाँ है, यह बात जान ली है। इसलिये आप स्वस्थ हों और सुने :-पृथ्वी पर, धातकी खण्ड के विदेहक्षेत्र स्थित नन्दी नामक गाँव में, दरिद्र स्थितिवाला एक नागिल नामक गृहस्थ रहता है। वह पेट भरने के लिए, हमेशा, प्रेत की तरह भटकता है ; तोभी भूखा-प्यासा ही सोता और भूखाप्यासा ही उठता है। दरिद्र में भूख की तरह, मन्द-भाग्य में शिरो मणि, नागश्री नामकी स्त्री उस के है । खुजली रोगवाले के जिस तरह खुजली के ऊपर फोड़े फुन्सी और हो जाते हैं ; उसी तरह नागिलके ऊपरा-ऊपरी ६ कन्यायें गाँवकी सूअरीकी तरह स्वभाव से ही बहुत खानेवाली, कुरूपा और जगत् में निन्दित होने वाली हुई।इतने पर भी, उसकी स्त्री फिर गर्मवती हो गई । प्रायः दरिद्रियों को शीघ्र ही गर्भधारण करने वाली स्त्रियाँ मिलती हैं । इस मौके पर नागिल मन में चिन्ता करने लगा-'यह मेरे किस कर्म का
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शतक' मँगाकर, संसार की सारभूत मनमोहिनो नारियों के सम्बन्ध की सभी बातोंसे वाकिफ हूजिये । इसमें भर्तृहरिके श्लोंको के सिवा, संस्कृत के महाकवियों और उर्द शाइरोंकी चटकोली कविताएँ भी दी गई है। साथ ही १५ मनोमोहक चित्र भी दिये हैं। शृङ्गार रस-प्रोमियोंको यह ग्रन्थ अवश्य देखना चाहिये। ३५० पृष्ठों को मनोहर जिल्ददार पुस्तक का दाम ३॥) डाकखर्च ॥)