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________________ प्रार्थना से किया है। कवि ने महावीर के यश की विशालता का वर्णन किया है। महाकवि की इस कृति में, यह स्पष्ट है कि विशाल पैमाने पर काव्यात अलंकारों, छन्दों तथा अन्य कलापक्षीय उपादानों का अभाव है। जो आदिकालीन अधिकांश रचनाओं में ही है, परन्तु फिर भी भाषा काव्यस्प तथा तत्कालीन समय में साहित्य की प्रामाणिक रचनाओं के रूप में सत्यपुरीय महावीर उत्साह जैसी छोटी कृतियों का भी पर्याप्त महत्व है। प्रस्तुत गीति मुक्तक में एक अजस्त्र धारावाहिकता है प्रत्येक पद में कवि का उल्लास है। वह उसका उत्पाद प्रधान गीत है। जिसमें अपभ्रंश की अनुरणनात्मकता त्या ध्वन्यात्मकता जैसी काव्य प्रवृतियाँ स्पष्ट होती है। कवि के स्वर में महतृ अनुभूति और मधुरता का समन्वय है अतः अनुरंजन की क्षमता होना स्वाभाविक है। कवि ने ऐतिहासिक तथूय को काव्य माध्यम से प्रदर में प्रभावोत्पादक बनाया है। प्रस्तुत गीव की सबसे बड़ी विशेषता इसके जनगीत के रूप में लोक प्रिय होने में है। जीवन के मनोवेगों और पावों को जगाने में ये जन काव्य बड़े प्रभावशाली है। जैन समाज में आज की सत्यपुरीय महावीर उत्साह जैसे आल्हादक गीत कंठस्थ करके प्रतिदिन पाठ किए जाते है ર काम में सत्यपुरीय जिनेन्द्र महावीर के शौर्य का वर्मन पर्याप्त इक्वा से किया है। वर्णन का प्रवाह स्पष्ट है: बहुपति तारायनेहि रवि किं निन्यइ बहुरडि बि बिसरे हि मिल विकिंग मिलिज, मह कुरंग आस्ट्स कहि किरि काय पूजिव ब क ( अनेक वारामण मिलकर जिस प्रकार सूर्य के प्रकार का भेदन नहीं कर सकते, जैसे अनेक मिनवर मिठकर भी क्या मरुद्र को निगल सकते है? जिस प्रकार १- वही च, वहीं पृ० ४२। ह र जिमिद
SR No.010028
Book TitleAadikal ka Hindi Jain Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarishankar Sharma
PublisherHarishankar Sharma
Publication Year
Total Pages1076
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size84 MB
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