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मइ मई सहि दुक्ख गढ़ने गए,
बालपण सहिय इह बहुत अन्नाप
उठवणे व भगराइ
रोली,
मयम मल्लै भव जलहि यति बोलि (२७)
वक्षण सत्र विन डिउ परधमा पहरणी,
मारित विवि थापहि सकरणो
कुप्पह च हि
चाकि बच्चरे,
नव्य नारगीय जिम नदीय नवीय परे
पहिरोगेहिं इ डीउ, रंक जिम रोलीउ सयलगुण हंडी
वल्लहाणं विदुमेहिं इवाउको, बिवरील विषय
विक्ल जिम चंचलो मनुयगड ईम कमोहि ं विनहिड, ताय का सबसे पावईमयडि
डीप देवति इद सहिय डुक्कर, माइझ चित्स इनि झुंड निकम (२९-३१) इस प्रकार पूरी रचना माता और पुत्र के संवाद के रूप में चलती है कि दृष्टि से भी रचना का महत्व स्पष्ट हो जाता है।असार संसार को छोड़कर मनुष्य को शिव गति या निर्वाण की ओर उन्मुख होना चाहिए संसार में अनेक जन्म होते है। पाप होते है तथा पूर्व के संविद क्यों का प्रति हमें यहां भाकर भोगना पड़ता है। वस्तुतः मोग सूस और रेडिक सही जीवन का चरम लक्ष्य नहीं है इससे परे भी लेक आध्यात्मिक आकर्षण है जिन्हें मनुष्य संसार के इन इन्द्रियजन्यों से ऊपर उठकर ही प्राप्त कर सकता है। इस तरह पूरी रचना में कवि ने मृगावती के पुत्र के पूर्वभवकी कथा का वर्णन किया है। पूरी रचना ४२दों में पूरी हुई है। भाषा की दृष्टि रचना पर्याप्त है। साथ ही की कर्म, पन, जन्म, नरक, विमति, पंच महाव्रत मनादि अनेक कठिन बातों पर सुन्दर इष्टान्तों और क्या सूत्रों में प्रकाश डाला है।
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यह रचना एक बरित कथानक है जिसे पढ़ने से विश्व की प्राप्ति होगी ऐer afteा मठ है: